गुरु के सिख की आँखें सच्चे गुरु के हर अंग, रंग और रूप की शोभा देख रही हैं। आध्यात्मिक ज्ञान का आनंद और उसका अद्भुत प्रभाव स्पष्ट है।
गुरसिख के कान निरंतर गुरु के गुणों को सुनकर उनके रसास्वादक बन गए हैं, तथा वे उनके अद्भुत कार्यों का संदेश अपनी चेतना तक पहुंचा रहे हैं।
गुरसिख की जीभ सच्चे गुरु द्वारा आशीर्वादित शब्दों का उच्चारण कर रही है। इसका संगीत दसवें द्वार में गूंज रहा है और इससे उत्पन्न आनंद प्रार्थना के रूप में उसकी चेतना तक पहुंच रहा है और नाम सिमरन की खुशबू भी उसके द्वारा पहुंचाई जा रही है।
जैसे समुद्र में अनेक नदियाँ गिरती हैं, फिर भी उसकी प्यास कभी नहीं बुझती। वैसे ही गुरसिख के हृदय में उसके प्रियतम का प्रेम है, जहाँ नाम की अनेक लहरें प्रवाहित होती हैं, फिर भी उसकी प्रेममयी प्यास कभी नहीं बुझती। (620)