सच्चे गुरु के प्रेमी शिष्य, जिनके शरीर का प्रत्येक अंग भगवान के अमृत-रूपी नाम में मतवाला है, वे भगवान में लीन रहते हैं, जिनका स्वरूप अद्भुत और मोहक है।
जैसे पतंगा सदैव प्रकाश के प्रेम में लीन रहता है, वैसे ही भक्त का मन सच्चे गुरु की एक झलक पाने पर केन्द्रित रहता है। जैसे हिरण घण्डा हेरहा (पुराने समय का एक वाद्य) की धुन पर मोहित हो जाता है, वैसे ही भक्त भी घण्डा हेरहा की मधुर धुन में मग्न रहता है।
गुरु-उन्मुख सिख काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और अन्य दुर्गुणों से मुक्त होता है।
गुरुभक्त और नाम के साधकों का मन रहस्यमय दसवें द्वार में रहता है। यह परमानंद से परिपूर्ण, आश्चर्य से परे विस्मयकारी और अत्यंत अद्भुत स्थान है। (293)