कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 573


ਪੂਰਨਿ ਸਰਦ ਸਸਿ ਸਕਲ ਸੰਸਾਰ ਕਹੈ ਮੇਰੇ ਜਾਨੇ ਬਰ ਬੈਸੰਤਰ ਕੀ ਊਕ ਹੈ ।
पूरनि सरद ससि सकल संसार कहै मेरे जाने बर बैसंतर की ऊक है ।

पूर्णिमा का प्रकाश समस्त संसार को शीतल और सुखदायक लगता है, परन्तु मेरे लिए (प्रियतम के वियोग में दुःखी) वह जलती हुई लकड़ी के समान है।

ਅਗਨ ਅਗਨ ਤਨ ਮਧਯ ਚਿਨਗਾਰੀ ਛਾਡੈ ਬਿਰਹ ਉਸਾਸ ਮਾਨੋ ਫੰਨਗ ਕੀ ਫੂਕ ਹੈ ।
अगन अगन तन मधय चिनगारी छाडै बिरह उसास मानो फंनग की फूक है ।

विरह की यह पीड़ा शरीर में असंख्य ज्वालाएँ उत्पन्न कर रही है। विरह की आहें नाग के फुंफकारने जैसी हैं,

ਪਰਸਤ ਪਾਵਕ ਪਖਾਨ ਫੂਟ ਟੂਟ ਜਾਤ ਛਾਤੀ ਅਤਿ ਬਰਜਨ ਹੋਇ ਦੋਇ ਟੂਕ ਹੈ ।
परसत पावक पखान फूट टूट जात छाती अति बरजन होइ दोइ टूक है ।

इस प्रकार विरह की अग्नि इतनी प्रबल है कि उसके स्पर्श से पत्थर भी चूर-चूर हो जाते हैं। बहुत प्रयत्न करने पर भी मेरी छाती चूर-चूर हो रही है। (मैं विरह की पीड़ा अब और सहन नहीं कर सकता)।

ਪੀਯ ਕੇ ਸਿਧਾਰੇ ਭਾਰੀ ਜੀਵਨ ਮਰਨ ਭਏ ਜਨਮ ਲਜਾਯੋ ਪ੍ਰੇਮ ਨੇਮ ਚਿਤ ਚੂਕ ਹੈ ।੫੭੩।
पीय के सिधारे भारी जीवन मरन भए जनम लजायो प्रेम नेम चित चूक है ।५७३।

प्रियतम प्रभु के वियोग ने जीवन और मृत्यु दोनों को ही बोझिल बना दिया है। मैंने जो प्रेम के वचन और प्रतिज्ञाएँ की थीं, उनका पालन करने में अवश्य ही कोई भूल की है, जिससे मेरा मानव जन्म कलंकित हो रहा है। (जीवन व्यर्थ जा रहा है) (573)