कोई भी रंग या छाया प्रेम के रंग तक नहीं पहुंच सकती और न ही कोई प्रेम के अमृत के निकट पहुंच सकता है।
गुरु के वचनों के ध्यान से उत्पन्न प्रेममय सुगंध संसार की किसी भी सुगंध से प्राप्त नहीं हो सकती, न ही संसार की कोई भी प्रशंसा नाम सिमरन से उत्पन्न प्रेम की प्रशंसा की बराबरी कर सकती है।
गुरु के वचनों का चेतना में विलय किसी तराजू या माप से नहीं मापा जा सकता। अमूल्य प्रेम को संसार की किसी भी निधि से प्राप्त नहीं किया जा सकता।
नाम सिमरन से उत्पन्न प्रेममय शब्द की तुलना संसार की किसी भी व्याख्या या व्याख्या से नहीं की जा सकती। इस स्थिति का अनुमान लगाने में लाखों ग्रन्थ समाप्त हो गए हैं। (170)