इस संसार में मित्रों, परिवारजनों तथा अन्य परिचितों के साथ मिलन नाव में यात्रा करने वाले यात्रियों के समान है, जो थोड़े समय के लिए ही रहता है। इसलिए इस संसार में जो भी दान पुण्य के लिए किया जाता है, वह परलोक में अवश्य प्राप्त होता है।
भोजन, वस्त्र और धन परलोक में साथ नहीं जाते। सत्संगति में गुरु को जो कुछ सौंपा गया है, वही परलोक के लिए धन या कमाई है।
माया और उसके कर्मों के मोह में सारा समय व्यतीत करना व्यर्थ है, किन्तु साधु-पुरुषों की कुछ क्षण की संगति भी बड़ी उपलब्धि और उपयोगी है।
गुरु के वचनों/शिक्षाओं को मन से एकाकार करके तथा पवित्र संगति की कृपा से यह मलयुक्त तथा दुर्गुणों से ग्रस्त मनुष्य गुरु का आज्ञाकारी शिष्य बन जाता है। (334)