कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 351


ਜੈਸੇ ਦੀਪ ਦਿਪਤ ਮਹਾਤਮੈ ਨ ਜਾਨੈ ਕੋਊ ਬੁਝਤ ਹੀ ਅੰਧਕਾਰ ਭਟਕਤ ਰਾਤਿ ਹੈ ।
जैसे दीप दिपत महातमै न जानै कोऊ बुझत ही अंधकार भटकत राति है ।

जिस प्रकार जलते हुए दीपक का महत्व कोई नहीं समझता, किन्तु उसके बुझ जाने पर अंधकार में भटकना पड़ता है।

ਜੈਸੇ ਦ੍ਰੁਮ ਆਂਗਨਿ ਅਛਿਤ ਮਹਿਮਾ ਨ ਜਾਨੈ ਕਾਟਤ ਹੀ ਛਾਂਹਿ ਬੈਠਬੇ ਕਉ ਬਿਲਲਾਤ ਹੈ ।
जैसे द्रुम आंगनि अछित महिमा न जानै काटत ही छांहि बैठबे कउ बिललात है ।

जैसे आंगन में लगे पेड़ की कोई कदर नहीं होती, लेकिन जब वह गिर जाता है या उखड़ जाता है तो उसकी छाया के लिए तरसते हैं।

ਜੈਸੇ ਰਾਜਨੀਤਿ ਬਿਖੈ ਚੈਨ ਹੁਇ ਚਤੁਰਕੁੰਟ ਛਤ੍ਰ ਢਾਲਾ ਚਾਲ ਭਏ ਜੰਤ੍ਰ ਕੰਤ੍ਰ ਜਾਤ ਹੈ ।
जैसे राजनीति बिखै चैन हुइ चतुरकुंट छत्र ढाला चाल भए जंत्र कंत्र जात है ।

जिस प्रकार राज्य में कानून और व्यवस्था के लागू होने से सर्वत्र शांति और समृद्धि सुनिश्चित होती है, किन्तु जब कानून और व्यवस्था के लागू होने में समझौता हो जाता है तो अराजकता फैल जाती है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰਸਿਖ ਸਾਧ ਸੰਗਮ ਜੁਗਤਿ ਜਗ ਅੰਤਰੀਛ ਭਏ ਪਾਛੇ ਲੋਗ ਪਛੁਤਾਤ ਹੈ ।੩੫੧।
तैसे गुरसिख साध संगम जुगति जग अंतरीछ भए पाछे लोग पछुतात है ।३५१।

गुरु के सिखों के लिए भी संत सदगुरु से मिलने का यह अनूठा अवसर है। एक बार चूक जाने पर सभी पछताते हैं। (351)