जैसे एक बड़े से पत्ते में अनेक खाद्य पदार्थ परोसे जाते हैं, लेकिन खाने के बाद पत्ते को फेंक दिया जाता है। फिर उसका हमारे जीवन में कोई स्थान नहीं रह जाता।
जैसे पान के पत्ते को चबाने से उसका रस प्राप्त होता है और उसका आनंद लेने के बाद शेष भाग फेंक दिया जाता है। वह आधे सीपी के बराबर भी नहीं है।
जिस प्रकार गले में फूलों की माला पहनी जाती है और फूलों की सुगंध का आनंद लिया जाता है, लेकिन जब ये फूल मुरझा जाते हैं तो इन्हें यह कहकर फेंक दिया जाता है कि अब ये बेकार हैं।
जिस प्रकार बाल और नाखून यदि अपने स्थान से उखाड़ दिए जाएं तो बहुत कष्टदायक और कष्टदायक होते हैं, पति के प्रेम से विरक्त स्त्री की भी यही स्थिति होती है। (615)