कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 644


ਜੈਸੇ ਦਰਪਨ ਸੂਧੋ ਸੁਧ ਮੁਖ ਦੇਖੀਅਤ ਉਲਟ ਕੈ ਦੇਖੈ ਮੁਖ ਦੇਖੀਐ ਭਇਆਨ ਸੋ ।
जैसे दरपन सूधो सुध मुख देखीअत उलट कै देखै मुख देखीऐ भइआन सो ।

जैसे दर्पण को सीधा रखने पर छवि वास्तविक दिखती है और दर्पण को उल्टा रखने पर छवि विकृत हो जाती है। चेहरा भयानक दिखता है।

ਮਧੁਰ ਬਚਨ ਤਾਹੀ ਰਸਨਾ ਸੈ ਪ੍ਯਾਰੋ ਲਾਗੈ ਕੌਰਕ ਸਬਦ ਸੁਨ ਲਾਗੈ ਉਰ ਬਾਨ ਸੋ ।
मधुर बचन ताही रसना सै प्यारो लागै कौरक सबद सुन लागै उर बान सो ।

जिस प्रकार जीभ से कहे गए मीठे शब्द कानों को प्रिय लगते हैं, किन्तु उसी जीभ से कहे गए कड़वे शब्द बाण के समान चोट पहुँचाते हैं।

ਜੈਸੇ ਦਾਨੋ ਖਾਤ ਗਾਤ ਪੁਸ ਮਿਸ ਸ੍ਵਾਦ ਮੁਖ ਪੋਸਤ ਕੈ ਪੀਏ ਦੁਖ ਬ੍ਯਾਪਤ ਮਸਾਨ ਸੋ ।
जैसे दानो खात गात पुस मिस स्वाद मुख पोसत कै पीए दुख ब्यापत मसान सो ।

जिस प्रकार मुख से खाया गया भोजन मुख में अच्छा स्वाद देता है, यदि उसी मुख से अफीम का रस पी लिया जाए तो कष्ट होता है तथा मृत्यु निकट होने का आभास होता है।

ਤੈਸੇ ਭ੍ਰਿਤ ਨਿੰਦਕ ਸ੍ਵਭਾਵ ਚਕਈ ਚਕੋਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸਮਤ ਸਹਨਸੀਲ ਭਾਨੁ ਸੋ ।੬੪੪।
तैसे भ्रित निंदक स्वभाव चकई चकोर सतिगुर समत सहनसील भानु सो ।६४४।

इसी प्रकार सच्चे गुरु के सच्चे सेवक और निंदक का स्वभाव चकवी और चकोर जैसा होता है (चकवी सूर्य के प्रकाश की चाह रखती है जबकि चकोर सूर्य के अस्त होने की चाह रखता है)। सच्चे गुरु का दयालु स्वभाव सूर्य के समान है जो सभी को प्रकाश प्रदान करता है।