कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 394


ਜੈਸੇ ਦਰਪਨਿ ਦਿਬਿ ਸੂਰ ਸਨਮੁਖ ਰਾਖੈ ਪਾਵਕ ਪ੍ਰਗਾਸ ਹੋਟ ਕਿਰਨ ਚਰਿਤ੍ਰਿ ਕੈ ।
जैसे दरपनि दिबि सूर सनमुख राखै पावक प्रगास होट किरन चरित्रि कै ।

जैसे सूर्य की किरणों के सामने रखा गया आवर्धक लेंस आग पैदा करता है।

ਜੈਸੇ ਮੇਘ ਬਰਖਤ ਹੀ ਬਸੁੰਧਰਾ ਬਿਰਾਜੈ ਬਿਬਿਧਿ ਬਨਾਸਪਤੀ ਸਫਲ ਸੁਮਿਤ੍ਰ ਕੈ ।
जैसे मेघ बरखत ही बसुंधरा बिराजै बिबिधि बनासपती सफल सुमित्र कै ।

जिस प्रकार पृथ्वी वर्षा से सुन्दर लगती है और अच्छे मित्र की भांति फल-फूल उत्पन्न करती है।

ਭੈਟਤ ਭਤਾਰਿ ਨਾਰਿ ਸੋਭਤ ਸਿੰਗਾਰਿ ਚਾਰਿ ਪੂਰਨ ਅਨੰਦ ਸੁਤ ਉਦਿਤਿ ਬਚਿਤ ਕੈ ।
भैटत भतारि नारि सोभत सिंगारि चारि पूरन अनंद सुत उदिति बचित कै ।

जिस प्रकार एक सुसज्जित और सुशोभित स्त्री का अपने पति के साथ संयोग होने पर पुत्र उत्पन्न होता है और पत्नी अत्यन्त प्रसन्न होती है।

ਸਤਿਗੁਰ ਦਰਸਿ ਪਰਸਿ ਬਿਗਸਤ ਸਿਖ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਿਧਾਨ ਗਿਆਨ ਪਾਵਨ ਪਵਿਤ੍ਰ ਕੈ ।੩੯੪।
सतिगुर दरसि परसि बिगसत सिख प्रापत निधान गिआन पावन पवित्र कै ।३९४।

इसी प्रकार गुरु का आज्ञाकारी शिष्य सच्चे गुरु के दर्शन पाकर प्रसन्न होता है, खिल उठता है और अपने सच्चे गुरु से दिव्य ज्ञान का भण्डार तथा नाम सिमरन का अभिषेक पाकर पवित्र व्यक्ति बन जाता है। (394)