कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 445


ਬਾਂਝ ਬਧੂ ਪੁਰਖੁ ਨਿਪੁੰਸਕ ਨ ਸੰਤਤ ਹੁਇ ਸਲਲ ਬਿਲੋਇ ਕਤ ਮਾਖਨ ਪ੍ਰਗਾਸ ਹੈ ।
बांझ बधू पुरखु निपुंसक न संतत हुइ सलल बिलोइ कत माखन प्रगास है ।

जैसे बांझ स्त्री और नपुंसक पुरुष संतान उत्पन्न नहीं कर सकते, तथा जल को मथने से मक्खन नहीं निकल सकता।

ਫਨ ਗਹਿ ਦੁਗਧ ਪੀਆਏ ਨ ਮਿਟਤ ਬਿਖੁ ਮੂਰੀ ਖਾਏ ਮੁਖ ਸੈ ਨ ਪ੍ਰਗਟੇ ਸੁਬਾਸ ਹੈ ।
फन गहि दुगध पीआए न मिटत बिखु मूरी खाए मुख सै न प्रगटे सुबास है ।

जैसे दूध पिलाने से नाग का विष नष्ट नहीं होता तथा मूली खाने से मुंह से अच्छी गंध नहीं आती।

ਮਾਨਸਰ ਪਰ ਬੈਠੇ ਬਾਇਸੁ ਉਦਾਸ ਬਾਸ ਅਰਗਜਾ ਲੇਪੁ ਖਰ ਭਸਮ ਨਿਵਾਸ ਹੈ ।
मानसर पर बैठे बाइसु उदास बास अरगजा लेपु खर भसम निवास है ।

जिस प्रकार गंदगी खाने वाला कौआ मानसरोवर झील पर पहुंचकर दुखी हो जाता है, क्योंकि उसे वह गंदगी नहीं मिलती, जिसे खाने का वह आदी है; उसी प्रकार गधे को भी यदि सुगंधियों से नहलाया जाए, तो वह धूल में लोटने लगता है।

ਆਂਨ ਦੇਵ ਸੇਵਕ ਨ ਜਾਨੈ ਗੁਰਦੇਵ ਸੇਵ ਕਠਨ ਕੁਟੇਵ ਨ ਮਿਟਤ ਦੇਵ ਦਾਸ ਹੈ ।੪੪੫।
आंन देव सेवक न जानै गुरदेव सेव कठन कुटेव न मिटत देव दास है ।४४५।

इसी प्रकार अन्य देवताओं के सेवक भी सच्चे गुरु की सेवा का आनन्द नहीं पा सकते, क्योंकि भगवान के अनुयायियों की पुरानी और बुरी आदतें नष्ट नहीं हो सकतीं। (४४५)