मैं पतंगे की तरह गुरु की चमकती हुई झलक पर अपने आपको बलिदान नहीं करता, न ही मैं हिरण की तरह गुरु के शब्दों के संगीत को अपने भीतर समाहित करने की विधि जानता हूँ;
जैसे कमल पुष्प के रस के लिए पागल भौंरा पुष्प के बंद हो जाने पर अपने प्राण त्याग देता है, परन्तु मैंने अपने सद्गुरु के चरण-कमलों पर अपने आपको बलिदान नहीं किया है, न ही जल से बाहर मछली के समान सद्गुरु के वियोग की पीड़ा को जाना है;
निम्न योनियों के जीव मात्र एक गुण के आधार पर अपने प्रेम के लिए प्राण त्यागने से पीछे नहीं हटते। किन्तु मैं अपनी सम्पूर्ण बुद्धि के बावजूद भी इन जीवों के समान कोई गुण धारण नहीं करता, मैं अपने सच्चे गुरु के लिए स्वयं का बलिदान नहीं करता, जीव तो करते ही हैं;
सतगुरु शांति और सुकून के सागर हैं, लेकिन मैं उनके पास रहते हुए भी पत्थर के समान हूँ (जिस पर सतगुरु के किसी भी उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता)। नरक के दूत जैसे पापी का नाम सुनकर मुझे शर्म आती है। (23)