कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 502


ਜੈਸੇ ਜਲ ਮਧਿ ਮੀਨ ਮਹਿਮਾ ਨ ਜਾਨੈ ਪੁਨਿ ਜਲ ਬਿਨ ਤਲਫ ਤਲਫ ਮਰਿ ਜਾਤਿ ਹੈ ।
जैसे जल मधि मीन महिमा न जानै पुनि जल बिन तलफ तलफ मरि जाति है ।

जिस प्रकार मछली जल में तैरते समय जल का महत्व नहीं समझती, किन्तु जब जल से अलग हो जाती है, तो उसे जल का महत्व समझ में आता है और वह मिलन की लालसा में मर जाती है।

ਜੈਸੇ ਬਨ ਬਸਤ ਮਹਾਤਮੈ ਨ ਜਾਨੈ ਪੁਨਿ ਪਰ ਬਸ ਭਏ ਖਗ ਮ੍ਰਿਗ ਅਕੁਲਾਤ ਹੈ ।
जैसे बन बसत महातमै न जानै पुनि पर बस भए खग म्रिग अकुलात है ।

जिस प्रकार जंगल में रहने वाले हिरण और पक्षी को अपना महत्व नहीं पता, लेकिन जब शिकारी उन्हें पकड़कर पिंजरे में डाल देता है, तो उन्हें अपना महत्व पता चलता है और वे जंगल में वापस जाने के लिए चिल्लाते हैं।

ਜੈਸੇ ਪ੍ਰਿਅ ਸੰਗਮ ਕੈ ਸੁਖਹਿ ਨ ਜਾਨੈ ਤ੍ਰਿਆ ਬਿਛੁਰਤ ਬਿਰਹ ਬ੍ਰਿਥਾ ਕੈ ਬਿਲਲਾਤ ਹੈ ।
जैसे प्रिअ संगम कै सुखहि न जानै त्रिआ बिछुरत बिरह ब्रिथा कै बिललात है ।

जिस प्रकार एक पत्नी अपने पति के साथ रहने के दौरान उसके महत्व को नहीं समझती, लेकिन जब वह पति से अलग हो जाती है, तो उसे होश आ जाता है। वह पति से अलग होने की पीड़ा के कारण रोती-बिलखती है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਆਤਮਾ ਅਚੇਤ ਅੰਤਰ ਪਰਤ ਸਿਮਰਤ ਪਛੁਤਾਤ ਹੈ ।੫੦੨।
तैसे गुर चरन सरनि आतमा अचेत अंतर परत सिमरत पछुतात है ।५०२।

इसी प्रकार सच्चे गुरु की शरण में रहने वाला साधक गुरु की महानता से अनभिज्ञ रहता है, परन्तु गुरु से वियोग होने पर पश्चाताप करता है, विलाप करता है। (502)