कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 590


ਜੈਸੇ ਦੀਪ ਦੀਪਤ ਪਤੰਗ ਲੋਟ ਪੋਤ ਹੋਤ ਕਬਹੂੰ ਕੈ ਜ੍ਵਾਰਾ ਮੈ ਪਰਤ ਜਰ ਜਾਇ ਹੈ ।
जैसे दीप दीपत पतंग लोट पोत होत कबहूं कै ज्वारा मै परत जर जाइ है ।

जैसे एक पतंगा दीपक की लौ से मोहित होकर उसके चारों ओर चक्कर लगाता है और एक दिन उसकी लौ में गिरकर जल जाता है।

ਜੈਸੇ ਖਗ ਦਿਨਪ੍ਰਤਿ ਚੋਗ ਚੁਗਿ ਆਵੈ ਉਡਿ ਕਾਹੂ ਦਿਨ ਫਾਸੀ ਫਾਸੈ ਬਹੁਰ੍ਯੋ ਨ ਆਇ ਹੈ ।
जैसे खग दिनप्रति चोग चुगि आवै उडि काहू दिन फासी फासै बहुर्यो न आइ है ।

जिस प्रकार एक चिड़िया दिनभर दाना-कीड़े चुनती है और सूरज ढलते ही अपने घोंसले में लौट आती है, लेकिन किसी दिन वह चिड़िया पकड़ने वाले के जाल में फंस जाती है और अपने घोंसले में वापस नहीं लौटती।

ਜੈਸੇ ਅਲ ਕਮਲ ਕਮਲ ਪ੍ਰਤਿ ਖੋਜੈ ਨਿਤ ਕਬਹੂੰ ਕਮਲ ਦਲ ਸੰਪਟ ਸਮਾਇ ਹੈ ।
जैसे अल कमल कमल प्रति खोजै नित कबहूं कमल दल संपट समाइ है ।

जिस प्रकार एक काली मधुमक्खी विभिन्न कमल के फूलों से अमृत खोजती और सूँघती रहती है, लेकिन एक दिन वह बक्सेनुमा फूल में फंस जाती है।

ਤੈਸੇ ਗੁਰਬਾਨੀ ਅਵਗਾਹਨ ਕਰਤ ਚਿਤ ਕਬਹੂੰ ਮਗਨ ਹ੍ਵੈ ਸਬਦ ਉਰਝਾਇ ਹੈ ।੫੯੦।
तैसे गुरबानी अवगाहन करत चित कबहूं मगन ह्वै सबद उरझाइ है ।५९०।

इसी प्रकार साधक निरन्तर गुरबाणी में गोते लगाता रहता है, किन्तु किसी दिन वह गुरबाणी में इतना लीन हो जाता है कि गुरु के वचनों में ही लीन हो जाता है। (590)