जैसे एक पतंगा दीपक की लौ से मोहित होकर उसके चारों ओर चक्कर लगाता है और एक दिन उसकी लौ में गिरकर जल जाता है।
जिस प्रकार एक चिड़िया दिनभर दाना-कीड़े चुनती है और सूरज ढलते ही अपने घोंसले में लौट आती है, लेकिन किसी दिन वह चिड़िया पकड़ने वाले के जाल में फंस जाती है और अपने घोंसले में वापस नहीं लौटती।
जिस प्रकार एक काली मधुमक्खी विभिन्न कमल के फूलों से अमृत खोजती और सूँघती रहती है, लेकिन एक दिन वह बक्सेनुमा फूल में फंस जाती है।
इसी प्रकार साधक निरन्तर गुरबाणी में गोते लगाता रहता है, किन्तु किसी दिन वह गुरबाणी में इतना लीन हो जाता है कि गुरु के वचनों में ही लीन हो जाता है। (590)