सृष्टि की प्रक्रिया और घटना आश्चर्य, विस्मय, रंग-बिरंगी और मनोरम है। सुन्दर और मनोरम सृष्टि को देखते हुए और उसकी सराहना करते हुए, हमें अपने हृदय में सृष्टिकर्ता को बसाना चाहिए।
गुरु के वचनों के सहारे तथा उनके अभ्यास से हमें सब वस्तुओं में परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव करना चाहिए; जैसे किसी वाद्य की धुन सुनते समय हमें उस धुन में वादक की उपस्थिति का अनुभव होता है।
हमें शांति और आराम के प्रदाता, दयालुता के भण्डार को भोजन, बिस्तर, धन और अन्य सभी खजानों के दान से पहचानना चाहिए, जिनसे उसने हमें आशीर्वाद दिया है।
सब शब्दों को कहने वाला, सब कुछ दिखाने वाला, सब कुछ सुनने वाला, सब वस्तुओं का दाता और सब सुखों को भोक्ता। वह सर्वशक्तिमान पूर्ण प्रभु सदृश सच्चा गुरु केवल संतों की पवित्र संगति में ही जाना जाता है। (244)