जिस प्रकार जहाज पर चढ़े बिना समुद्र पार नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार पारस पत्थर के स्पर्श के बिना लोहा, तांबा या अन्य धातुएं सोने में नहीं बदल सकतीं।
जिस प्रकार गंगा जल के अलावा कोई भी जल पवित्र नहीं माना जाता है तथा पति-पत्नी के संयोग के बिना कोई संतान उत्पन्न नहीं हो सकती है।
जैसे बीज बोये बिना कोई फसल नहीं उग सकती और सीप में तब तक मोती नहीं बन सकता जब तक वर्षा की स्वाति बूँद उस पर न पड़े।
इसी प्रकार सच्चे गुरु की शरण और अभिषेक के बिना कोई अन्य उपाय या शक्ति नहीं है जो जन्म-मरण के चक्र को समाप्त कर सके। जो गुरु के दिव्य वचन से रहित है, उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता। (५३८)