कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 538


ਜੈਸੇ ਮਾਂਝ ਬੈਠੇ ਬਿਨੁ ਬੋਹਿਥਾ ਨ ਪਾਰ ਪਰੈ ਪਾਰਸ ਪਰਸੈ ਬਿਨੁ ਧਾਤ ਨ ਕਨਿਕ ਹੈ ।
जैसे मांझ बैठे बिनु बोहिथा न पार परै पारस परसै बिनु धात न कनिक है ।

जिस प्रकार जहाज पर चढ़े बिना समुद्र पार नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार पारस पत्थर के स्पर्श के बिना लोहा, तांबा या अन्य धातुएं सोने में नहीं बदल सकतीं।

ਜੈਸੇ ਬਿਨੁ ਗੰਗਾ ਨ ਪਾਵਨ ਆਨ ਜਲੁ ਹੈ ਨਾਰ ਨ ਭਤਾਰਿ ਬਿਨੁ ਸੁਤਨ ਅਨਿਕ ਹੈ ।
जैसे बिनु गंगा न पावन आन जलु है नार न भतारि बिनु सुतन अनिक है ।

जिस प्रकार गंगा जल के अलावा कोई भी जल पवित्र नहीं माना जाता है तथा पति-पत्नी के संयोग के बिना कोई संतान उत्पन्न नहीं हो सकती है।

ਜੈਸੇ ਬਿਨੁ ਬੀਜ ਬੋਏ ਨਿਪਜੈ ਨ ਧਾਨ ਧਾਰਾ ਸੀਪ ਸ੍ਵਾਂਤ ਬੂੰਦ ਬਿਨੁ ਮੁਕਤਾ ਨ ਮਾਨਕ ਹੈ ।
जैसे बिनु बीज बोए निपजै न धान धारा सीप स्वांत बूंद बिनु मुकता न मानक है ।

जैसे बीज बोये बिना कोई फसल नहीं उग सकती और सीप में तब तक मोती नहीं बन सकता जब तक वर्षा की स्वाति बूँद उस पर न पड़े।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਬਿਨੁ ਜਨਮ ਮਰਨ ਮੇਟਿ ਜਨ ਨ ਜਨ ਕਹੈ ।੫੩੮।
तैसे गुर चरन सरनि गुर भेटे बिनु जनम मरन मेटि जन न जन कहै ।५३८।

इसी प्रकार सच्चे गुरु की शरण और अभिषेक के बिना कोई अन्य उपाय या शक्ति नहीं है जो जन्म-मरण के चक्र को समाप्त कर सके। जो गुरु के दिव्य वचन से रहित है, उसे मनुष्य नहीं कहा जा सकता। (५३८)