हार स्वीकार करने से सारे कलह समाप्त हो जाते हैं। क्रोध त्यागने से बहुत शांति मिलती है। यदि हम अपने सभी कर्मों/व्यापारों के परिणामों/आय को त्याग दें, तो हम पर कभी कर नहीं लगेगा। यह बात पूरी दुनिया जानती है।
जिस हृदय में अहंकार और अभिमान रहता है, वह उस ऊंची भूमि के समान है, जहां जल नहीं ठहर सकता। भगवान भी वहां नहीं ठहर सकते।
पैर शरीर के सबसे निचले हिस्से में स्थित होते हैं। इसीलिए पैरों की धूल और पाद प्रक्षालन को पवित्र माना जाता है और इसलिए उनका सम्मान किया जाता है।
ऐसा ही भगवान् का वह भक्त और उपासक है जो अभिमानरहित और नम्र है। सारा जगत् उसके चरणों में गिरकर अपना माथा धन्य मानता है। (288)