कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 429


ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਕਰੰਦ ਰਜ ਲੁਭਤ ਹੁਇ ਮਨ ਮਧੁਕਰ ਲਪਟਾਨੇ ਹੈ ।
सतिगुर चरन कमल मकरंद रज लुभत हुइ मन मधुकर लपटाने है ।

एक समर्पित सिख का मन हमेशा भगवान के चरण कमलों की मधुर सुगंध वाली धूल में भौंरे की तरह उलझा रहता है। (वह हमेशा भगवान के नाम के ध्यान में लीन रहता है)।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਿਧਾਨ ਪਾਨ ਅਹਿਨਿਸਿ ਰਸਕਿ ਹੁਇ ਅਤਿ ਉਨਮਤਿ ਆਨ ਗਿਆਨ ਬਿਸਰਾਨੇ ਹੈ ।
अंम्रित निधान पान अहिनिसि रसकि हुइ अति उनमति आन गिआन बिसराने है ।

वह दिन-रात नाम-अमृत का रसपान करने के लिए लालायित रहता है। उसके आनंद और उल्लास में वह अन्य सभी सांसारिक चेतनाओं, प्रलोभनों और ज्ञान को अनदेखा कर देता है।

ਸਹਜ ਸਨੇਹ ਗੇਹ ਬਿਸਮ ਬਿਦੇਹ ਰੂਪ ਸ੍ਵਾਂਤਬੂੰਦ ਗਤਿ ਸੀਪ ਸੰਪਟ ਸਮਾਨੇ ਹੈ ।
सहज सनेह गेह बिसम बिदेह रूप स्वांतबूंद गति सीप संपट समाने है ।

ऐसे समर्पित सिख का मन तब प्रेमपूर्वक प्रभु के पवित्र चरणों में रहता है। वह सभी शारीरिक इच्छाओं से मुक्त हो जाता है। सीप पर गिरने वाली वर्षा की स्वाति बूंद की तरह, वह भी प्रभु के पवित्र चरणों के बक्से में बंद रहता है।

ਚਰਨ ਸਰਨ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਕਟਾਛ ਕਰਿ ਮੁਕਤਾ ਮਹਾਂਤ ਹੁਇ ਅਨੂਪ ਰੂਪ ਠਾਨੇ ਹੈ ।੪੨੯।
चरन सरन सुख सागर कटाछ करि मुकता महांत हुइ अनूप रूप ठाने है ।४२९।

शांति के सागर-सच्चे गुरु की शरण में लीन होकर उनकी कृपा से वह भी सीप के मोती के समान अमूल्य एवं अद्वितीय मोती बन जाता है। (429)