एक समर्पित सिख का मन हमेशा भगवान के चरण कमलों की मधुर सुगंध वाली धूल में भौंरे की तरह उलझा रहता है। (वह हमेशा भगवान के नाम के ध्यान में लीन रहता है)।
वह दिन-रात नाम-अमृत का रसपान करने के लिए लालायित रहता है। उसके आनंद और उल्लास में वह अन्य सभी सांसारिक चेतनाओं, प्रलोभनों और ज्ञान को अनदेखा कर देता है।
ऐसे समर्पित सिख का मन तब प्रेमपूर्वक प्रभु के पवित्र चरणों में रहता है। वह सभी शारीरिक इच्छाओं से मुक्त हो जाता है। सीप पर गिरने वाली वर्षा की स्वाति बूंद की तरह, वह भी प्रभु के पवित्र चरणों के बक्से में बंद रहता है।
शांति के सागर-सच्चे गुरु की शरण में लीन होकर उनकी कृपा से वह भी सीप के मोती के समान अमूल्य एवं अद्वितीय मोती बन जाता है। (429)