मेरा रूप सुन्दर नहीं है, फिर मैं सुन्दर का स्मरण कैसे कर सकता हूँ? मनोकामना पूर्ण करने वाले प्रभु? मेरी आँखें सुन्दर नहीं हैं, फिर मैं उस प्यारे प्रभु की झलक कैसे देख सकता हूँ?
मेरी जीभ अमृतमय नहीं है। फिर मैं अपने प्रियतम से प्रभावशाली निवेदन कैसे कर सकता हूँ? मुझमें ऐसी श्रवण शक्ति नहीं है कि मैं अपने प्रियतम प्रभु के मधु-समान वचनों का आनन्द ले सकूँ?
मैं अपने शरीर के हर अंग से दुर्बल और अपूर्ण हूँ। फिर मैं अपने प्रभु के नाम की श्रेष्ठ माला कैसे बना सकता हूँ? मेरे पास ऐसा कोई नहीं है जिस पर मैं अपने प्रियतम के चरण धो सकूँ।
मेरे हृदय में सेवा का भाव नहीं है, इसलिए मैं अपने प्रियतम की सेवा में प्रवृत्त नहीं हो सकता। न ही मुझमें वह भक्ति है, जिसके द्वारा मैं प्रियतम भगवान् की महानता के साथ एकाकार हो सकूँ। (भगवान् की महानता मुझमें निवास करे।) (६४०)