कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 467


ਦੋਇ ਦਰਪਨ ਦੇਖੈ ਏਕ ਮੈ ਅਨੇਕ ਰੂਪ ਦੋਇ ਨਾਵ ਪਾਵ ਧਰੈ ਪਹੁਚੈ ਨ ਪਾਰਿ ਹੈ ।
दोइ दरपन देखै एक मै अनेक रूप दोइ नाव पाव धरै पहुचै न पारि है ।

जिस प्रकार एक दूसरे के बगल में रखे दो या अधिक दर्पणों में देखने पर एक से अधिक छवियाँ दिखाई देती हैं, उसी प्रकार दो नावों में पैर रखने से नदी पार नहीं की जा सकती।

ਦੋਇ ਦਿਸਾ ਗਹੇ ਗਹਾਏ ਸੈ ਹਾਥ ਪਾਉ ਟੂਟੇ ਦੁਰਾਹੇ ਦੁਚਿਤ ਹੋਇ ਧੂਲ ਪਗੁ ਧਾਰਿ ਹੈ ।
दोइ दिसा गहे गहाए सै हाथ पाउ टूटे दुराहे दुचित होइ धूल पगु धारि है ।

जिस प्रकार एक ही समय में दोनों ओर से खींचने पर हाथ या पैर टूटने का खतरा रहता है, उसी प्रकार चौराहे पर सही रास्ते के चयन में अक्सर गलती हो जाती है।

ਦੋਇ ਭੂਪ ਤਾ ਕੋ ਗਾਉ ਪਰਜਾ ਨ ਸੁਖੀ ਹੋਤ ਦੋਇ ਪੁਰਖਨ ਕੀ ਨ ਕੁਲਾਬਧੂ ਨਾਰਿ ਹੈ ।
दोइ भूप ता को गाउ परजा न सुखी होत दोइ पुरखन की न कुलाबधू नारि है ।

जिस प्रकार यदि किसी नगर पर दो राजाओं का शासन हो तो वह अपनी प्रजा को शांति और आराम प्रदान नहीं कर सकता, उसी प्रकार दो पुरुषों से विवाहित स्त्री किसी भी परिवार के प्रति ईमानदार और वफादार नहीं हो सकती।

ਗੁਰਸਿਖ ਹੋਇ ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵ ਟੇਵ ਗਹੈ ਸਹੈ ਜਮ ਡੰਡ ਧ੍ਰਿਗ ਜੀਵਨੁ ਸੰਸਾਰ ਹੈ ।੪੬੭।
गुरसिख होइ आन देव सेव टेव गहै सहै जम डंड ध्रिग जीवनु संसार है ।४६७।

इसी प्रकार यदि गुरुभक्त सिख अपने व्यसन को शांत करने के लिए अन्य देवी-देवताओं की पूजा करता है, तो उसकी मुक्ति की तो बात ही क्या, वह मृत्यु के दूतों की भी सजा भोगता है। उसका जीवन संसार द्वारा धिक्कारा जाता है। (४६७)