काम, क्रोध आदि पाँच विकार माया की छाया हैं। इनसे मनुष्य में राक्षस बनकर उथल-पुथल मची हुई है। इनके कारण ही मनुष्य के मन में अनेकों विकारों और बुराइयों का सागर उमड़ रहा है।
मनुष्य जीवन बहुत छोटा है, लेकिन उसकी अपेक्षाएं और इच्छाएं अनंत हैं। मन रूपी सागर में विकारों की लहरें हैं, जिनकी लालसाएं अकल्पनीय हैं।
इन सभी लालसाओं और इच्छाओं के प्रभाव में मन चारों दिशाओं में घूमता रहता है और क्षण भर में पार के लोकों में पहुंच जाता है।
चिंता, शारीरिक व्याधियों तथा अनेक प्रकार के अन्य रोगों में उलझे रहने पर भी उसे भटकने से नहीं रोका जा सकता। उसे रोकने का एकमात्र साधन है सच्चे गुरु की शरण। (233)