कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 233


ਮਾਇਆ ਛਾਇਆ ਪੰਚ ਦੂਤ ਭੁਤ ਉਦਮਾਦ ਠਟ ਘਟ ਘਟ ਘਟਿਕਾ ਮੈ ਸਾਗਰ ਅਨੇਕ ਹੈ ।
माइआ छाइआ पंच दूत भुत उदमाद ठट घट घट घटिका मै सागर अनेक है ।

काम, क्रोध आदि पाँच विकार माया की छाया हैं। इनसे मनुष्य में राक्षस बनकर उथल-पुथल मची हुई है। इनके कारण ही मनुष्य के मन में अनेकों विकारों और बुराइयों का सागर उमड़ रहा है।

ਅਉਧ ਪਲ ਘਟਿਕਾ ਜੁਗਾਦਿ ਪਰਜੰਤ ਆਸਾ ਲਹਰਿ ਤਰੰਗ ਮੈ ਨ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਕੀ ਟੇਕ ਹੈ ।
अउध पल घटिका जुगादि परजंत आसा लहरि तरंग मै न त्रिसना की टेक है ।

मनुष्य जीवन बहुत छोटा है, लेकिन उसकी अपेक्षाएं और इच्छाएं अनंत हैं। मन रूपी सागर में विकारों की लहरें हैं, जिनकी लालसाएं अकल्पनीय हैं।

ਮਨ ਮਨਸਾ ਪ੍ਰਸੰਗ ਧਾਵਤ ਚਤੁਰ ਕੁੰਟ ਛਿਨਕ ਮੈ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਜਾਵਦੇਕ ਹੈ ।
मन मनसा प्रसंग धावत चतुर कुंट छिनक मै खंड ब्रहमंड जावदेक है ।

इन सभी लालसाओं और इच्छाओं के प्रभाव में मन चारों दिशाओं में घूमता रहता है और क्षण भर में पार के लोकों में पहुंच जाता है।

ਆਧਿ ਕੈ ਬਿਆਧਿ ਕੈ ਉਪਾਧਿ ਕੈ ਅਸਾਧ ਮਨ ਸਾਧਿਬੇ ਕਉ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਗੁਰ ਏਕ ਹੈ ।੨੩੩।
आधि कै बिआधि कै उपाधि कै असाध मन साधिबे कउ चरन सरनि गुर एक है ।२३३।

चिंता, शारीरिक व्याधियों तथा अनेक प्रकार के अन्य रोगों में उलझे रहने पर भी उसे भटकने से नहीं रोका जा सकता। उसे रोकने का एकमात्र साधन है सच्चे गुरु की शरण। (233)