हे मेरे अहंकारी मित्र! अभिमान मत करो, मैं इस अभिमान में बहुत अधिक बुद्धिमत्ता नहीं मानता। मेरी बात मानो और इस मानव जन्म को भगवान से मिलने का सबसे शुभ और अमूल्य समय मानो। नानाजी की दीक्षा लेकर इस अवसर को सफल बनाओ।
प्यारे प्रभु की अनेक प्रिय पत्नियाँ हैं, जिनके हृदय में उनके अमृतमय नाम का रस भरा हुआ है। अनेक योनियों में भटकने के बाद अब इस मानव जन्म के माध्यम से प्रभु से मिलने की बारी आपकी आई है। क्यों न आप अपना अहंकार त्यागकर प्रभु से मिल जाएँ?
यह रात्रि रूपी मानव जीवन तो बीत ही रहा है। यौवन, शरीर और उसके सभी श्रृंगार पीछे छूट जाएँगे। फिर तुम अपने प्रिय पति के प्रेममय अमृत का आनंद क्यों नहीं लेती? और क्यों तुम अपना रात्रि रूपी जीवन माया के झूठे सुखों में बर्बाद कर रही हो?
और यदि तुम इस मानव जन्म में अपने स्वामी भगवान से मिलन नहीं कर पाए तो तुम्हें फिर कभी अवसर नहीं मिलेगा। तुम्हें शेष जीवन भगवान के वियोग में ही व्यतीत करना पड़ेगा। यह वियोग मृत्यु से भी अधिक कष्टकारी है। (660)