कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 606


ਜੈਸੇ ਅੰਧਕਾਰ ਬਿਖੈ ਦਿਪਤ ਦੀਪਕ ਦੇਖ ਅਨਿਕ ਪਤੰਗ ਓਤ ਪੋਤ ਹੁਇ ਗੁੰਜਾਰ ਹੀ ।
जैसे अंधकार बिखै दिपत दीपक देख अनिक पतंग ओत पोत हुइ गुंजार ही ।

जैसे अंधेरे में जलते हुए दीपक को देखकर अनेक पतंगे उसके चारों ओर ताने-बाने की तरह घूमने लगते हैं।

ਜੈਸੇ ਮਿਸਟਾਂਨ ਪਾਨ ਜਾਨ ਕਾਨ ਭਾਂਜਨ ਮੈ ਰਾਖਤ ਹੀ ਚੀਟੀ ਲੋਭ ਲੁਭਤ ਅਪਾਰ ਹੀ ।
जैसे मिसटांन पान जान कान भांजन मै राखत ही चीटी लोभ लुभत अपार ही ।

जिस प्रकार मिठाइयों को अतिक्रमणकारियों से बचाने के लिए सर्वोत्तम संभव तरीके से रखा जाता है, फिर भी लालच से मोहित चींटियाँ चारों ओर से उस तक पहुँच जाती हैं।

ਜੈਸੇ ਮ੍ਰਿਦ ਸੌਰਭ ਕਮਲ ਓਰ ਧਾਇ ਜਾਇ ਮਧੁਪ ਸਮੂਹ ਸੁਭ ਸਬਦ ਉਚਾਰਹੀ ।
जैसे म्रिद सौरभ कमल ओर धाइ जाइ मधुप समूह सुभ सबद उचारही ।

जैसे ही सुगंध से आकर्षित होकर भौंरों का एक झुंड कमल के फूलों पर आक्रमण करता है।

ਤੈਸੇ ਹੀ ਨਿਧਾਨ ਗੁਰ ਗ੍ਯਾਨ ਪਰਵਾਨ ਜਾ ਮੈ ਸਗਲ ਸੰਸਾਰ ਤਾ ਚਰਨ ਨਮਸਕਾਰ ਹੀ ।੬੦੬।
तैसे ही निधान गुर ग्यान परवान जा मै सगल संसार ता चरन नमसकार ही ।६०६।

इसी प्रकार जो आज्ञाकारी सिख (गुरु द्वारा) स्वीकार कर लिया जाता है और जिसके मन में सच्चे गुरु के शब्द और ज्ञान, जो परम निधि है, बस जाते हैं, उस सिख के चरणों में सारा संसार झुकता है। (606)