गुरु द्वारा दीक्षा लेने तथा भगवन्नाम का ध्यान करने से माया के सभी गुण (रजो, सतो, तमो) तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं तथा उनका प्रभाव भी नगण्य हो जाता है।
गुरु के ज्ञान की प्राप्ति से गुरु-उन्मुख व्यक्ति की सभी इच्छाओं से आसक्ति समाप्त हो जाती है, उसके सभी कार्य कल्याणकारी हो जाते हैं, उसकी सभी सांसारिक इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं और उसका भटकना बंद हो जाता है।
गुरु-उन्मुख व्यक्ति गुरु की शिक्षा के कारण सभी आसक्तियों और रसों से मुक्त हो जाता है। नाम-सिमरन में लीन होकर वह अन्य वाद-विवाद और तर्क-वितर्क में नहीं पड़ता। वह पूर्णतया इच्छा-रहित और संतुष्ट हो जाता है। सांसारिक वस्तुओं से उसकी आसक्ति समाप्त हो जाती है।
नाम सिमरन के पुण्य से गुरु की शिक्षा का अनुयायी अपने शरीर की सभी आवश्यकताओं से मुक्त हो जाता है। वह समाधि अवस्था में रहता है और माया से अछूता रहता है। वह सदैव प्रभु की याद में लीन रहता है। (272)