जब गुरु-चेतन व्यक्ति अपने गुरु के साथ सामंजस्य में रहता है, तो उसका मन भगवान की याद में लीन हो जाता है। तब उसे एहसास होता है कि सभी रूप वास्तव में भगवान के ही रूप हैं।
और जब वह उसके साथ अपना सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, तो उसके नाम के ध्यान के माध्यम से उसे यह अनुभूति होती है कि निराकार प्रभु ने स्वयं को विभिन्न रूपों और आकारों में प्रकट किया है।
सच्चे गुरु के साथ एक समर्पित सिख का मिलन उसे सेवा और परोपकार की भावना प्रदान करता है और वह उनकी सेवा में उपलब्ध रहने के लिए तरसता है। तब वह प्रेमपूर्ण भक्ति और दिव्य चिंतन का चरित्र विकसित करता है।
भगवत्-चेतनावान व्यक्ति और उसके सद्गुरु का मिलन बहुत ही गौरवपूर्ण और विस्मयकारी है। कोई भी अन्य अवस्था उसकी बराबरी नहीं कर सकती। वह अनंत बार, बार-बार वंदन करने योग्य है। (51)