कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 89


ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਾਰਗ ਹੁਇ ਦੁਬਿਧਾ ਭਰਮ ਖੋਏ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਗਹੇ ਨਿਜ ਘਰਿ ਆਏ ਹੈ ।
गुरमुखि मारग हुइ दुबिधा भरम खोए चरन सरनि गहे निज घरि आए है ।

सिख धर्म के मार्ग पर चलने से संदेह और अलगाववाद नष्ट हो जाता है और सतगुरु के सहारे से आत्मसाक्षात्कार होता है।

ਦਰਸ ਦਰਸਿ ਦਿਬਿ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਪ੍ਰਗਾਸ ਭਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਕਟਾਛ ਕੈ ਅਮਰ ਪਦ ਪਾਏ ਹੈ ।
दरस दरसि दिबि द्रिसटि प्रगास भई अंम्रित कटाछ कै अमर पद पाए है ।

सतगुरु की कृपा से मनुष्य को ऐसी दृष्टि प्राप्त होती है जिससे वह अपने चारों ओर प्रभु को देख पाता है। सतगुरु की कृपा दृष्टि से मनुष्य शाश्वत पद को प्राप्त करता है।

ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਅਨਹਦ ਨਿਝਰ ਝਰਨ ਸਿਮਰਨ ਮੰਤ੍ਰ ਲਿਵ ਉਨਮਨ ਛਾਏ ਹੈ ।
सबद सुरति अनहद निझर झरन सिमरन मंत्र लिव उनमन छाए है ।

शब्द और चेतना के मिलन से तथा नाम की मधुर धुन से दिव्य अमृत की सतत धारा बहने लगती है। गुरु प्रदत्त मंत्र के निरंतर जाप से उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त होती है।

ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਹੁਇ ਇਕਤ੍ਰ ਗੁਰਮੁਖ ਸੁਖ ਪ੍ਰੇਮ ਨੇਮ ਬਿਸਮ ਬਿਸ੍ਵਾਸ ਉਪਜਾਏ ਹੈ ।੮੯।
मन बच क्रम हुइ इकत्र गुरमुख सुख प्रेम नेम बिसम बिस्वास उपजाए है ।८९।

गुरु-चेतना प्राप्त व्यक्ति मन, वचन और कर्म में सामंजस्य स्थापित करके वास्तविक आध्यात्मिक सुख और शांति प्राप्त करता है। प्रभु-प्रेम की वह अनूठी परंपरा उसके मन में अद्भुत आत्मविश्वास और श्रद्धा उत्पन्न करती है। (89)