कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 610


ਜੈਸੇ ਧਰ ਧਨੁਖ ਚਲਾਈਅਤ ਬਾਨ ਤਾਨ ਚਲ੍ਯੋ ਜਾਇ ਤਿਤ ਹੀ ਕਉ ਜਿਤ ਹੀ ਚਲਾਈਐ ।
जैसे धर धनुख चलाईअत बान तान चल्यो जाइ तित ही कउ जित ही चलाईऐ ।

जिस प्रकार धनुष में तीर चढ़ाकर, उसकी डोरी खींची जाती है और तीर को उस दिशा में छोड़ा जाता है, जिस दिशा में उसे जाना होता है।

ਜੈਸੇ ਅਸ੍ਵ ਚਾਬੁਕ ਲਗਾਇ ਤਨ ਤੇਜ ਕਰਿ ਦੋਰ੍ਯੋ ਜਾਇ ਆਤੁਰ ਹੁਇ ਹਿਤ ਹੀ ਦਉਰਾਈਐ ।
जैसे अस्व चाबुक लगाइ तन तेज करि दोर्यो जाइ आतुर हुइ हित ही दउराईऐ ।

जिस प्रकार घोड़े को तेज और उत्तेजित करने के लिए चाबुक मारा जाता है, वह उसी दिशा में दौड़ता रहता है जिस दिशा में उसे दौड़ने के लिए कहा जाता है

ਜੈਸੀ ਦਾਸੀ ਨਾਇਕਾ ਕੈ ਅਗ੍ਰਭਾਗ ਠਾਂਢੀ ਰਹੈ ਧਾਵੈ ਤਿਤ ਹੀ ਤਾਹਿ ਜਿਤ ਹੀ ਪਠਾਈਐ ।
जैसी दासी नाइका कै अग्रभाग ठांढी रहै धावै तित ही ताहि जित ही पठाईऐ ।

जैसे आज्ञाकारी दासी अपनी स्वामिनी के सामने सावधान खड़ी रहती है, और जिस ओर उसे भेजा जाता है, उस ओर वह शीघ्रता से चली जाती है,

ਤੈਸੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਕਿਰਤ ਸੰਜੋਗ ਲਗ ਭ੍ਰਮੈ ਭੂਮ ਜਤ ਜਤ ਖਾਨ ਪਾਨ ਤਹੀ ਜਾਇ ਖਾਈਐ ।੬੧੦।
तैसे प्राणी किरत संजोग लग भ्रमै भूम जत जत खान पान तही जाइ खाईऐ ।६१०।

इसी प्रकार जीव भी अपने पूर्वजन्म के कर्मों के अनुसार इस पृथ्वी पर भटकता रहता है। वह वहीं जाता है जहाँ उसका भाग्य होता है। (610)