कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 374


ਜੈਸੇ ਮਦ ਪੀਅਤ ਨ ਜਾਨੀਐ ਮਰੰਮੁ ਤਾ ਕੋ ਪਾਛੈ ਮਤਵਾਰੋ ਹੋਇ ਛਕੈ ਛਕ ਜਾਤਿ ਹੈ ।
जैसे मद पीअत न जानीऐ मरंमु ता को पाछै मतवारो होइ छकै छक जाति है ।

जिस प्रकार शराब पीने वाला व्यक्ति यह नहीं जानता कि उस पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और वह तब तक पीता रहता है जब तक कि वह बेहोश न हो जाए।

ਜੈਸੇ ਭਾਰਿ ਭੇਟਤ ਭਤਾਰਹਿ ਨ ਭੇਦੁ ਜਾਨਹਿ ਉਦਿਤ ਅਧਾਨ ਆਨ ਚਿਹਨਿ ਦਿਖਾਤ ਹੈ ।
जैसे भारि भेटत भतारहि न भेदु जानहि उदित अधान आन चिहनि दिखात है ।

जिस प्रकार पति के साथ संभोग करते समय पत्नी को उस समय इसके प्रभाव का पता नहीं चलता, लेकिन यह प्रभाव उसके गर्भ के रूप में प्रकट होता है।

ਕਰਿ ਪਰਿ ਮਾਨਕੁ ਨ ਲਾਗਤ ਹੈ ਭਾਰੀ ਤੋਲ ਮੋਲ ਸੰਖਿਆ ਦਮਕਨ ਹੇਰਤ ਹਿਰਾਤਿ ਹੈ ।
करि परि मानकु न लागत है भारी तोल मोल संखिआ दमकन हेरत हिराति है ।

जिस प्रकार हीरे का भार हाथ पर महसूस नहीं होता, परन्तु जब वह बिकता है, तो उससे मिलने वाले धन से सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਸੁਨਿ ਮਾਨੈ ਸਿਖ ਜਾਨੈ ਮਹਿਮਾ ਜਉ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਸਮਾਤ ਹੈ ।੩੭੪।
तैसे गुर अंम्रित बचन सुनि मानै सिख जानै महिमा जउ सुख सागर समात है ।३७४।

इसी प्रकार गुरु का अनुयायी सिख भी सच्चे गुरु के अमृततुल्य उपदेश को सुनता है और उसे मन, वचन और कर्म से अपनाता है। तब उसे उसकी महानता का बोध होता है और वह उस प्रभु में लीन हो जाता है जो सभी सुखों और शांति का सागर है। (नाम का साधक ही परमानंद को जानता है।)