जिस प्रकार शराब पीने वाला व्यक्ति यह नहीं जानता कि उस पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा और वह तब तक पीता रहता है जब तक कि वह बेहोश न हो जाए।
जिस प्रकार पति के साथ संभोग करते समय पत्नी को उस समय इसके प्रभाव का पता नहीं चलता, लेकिन यह प्रभाव उसके गर्भ के रूप में प्रकट होता है।
जिस प्रकार हीरे का भार हाथ पर महसूस नहीं होता, परन्तु जब वह बिकता है, तो उससे मिलने वाले धन से सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
इसी प्रकार गुरु का अनुयायी सिख भी सच्चे गुरु के अमृततुल्य उपदेश को सुनता है और उसे मन, वचन और कर्म से अपनाता है। तब उसे उसकी महानता का बोध होता है और वह उस प्रभु में लीन हो जाता है जो सभी सुखों और शांति का सागर है। (नाम का साधक ही परमानंद को जानता है।)