कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 577


ਜੈਸੇ ਤੌ ਪ੍ਰਸੂਤ ਸਮੈ ਸਤ੍ਰੂ ਕਰਿ ਮਾਨੈ ਪ੍ਰਿਐ ਜਨਮਤ ਸੁਤ ਪੁਨ ਰਚਤ ਸਿੰਗਾਰੈ ਜੀ ।
जैसे तौ प्रसूत समै सत्रू करि मानै प्रिऐ जनमत सुत पुन रचत सिंगारै जी ।

जैसे एक स्त्री प्रसव पीड़ा के समय अपने पति को अपना शत्रु मानती है, किन्तु बच्चे के जन्म के बाद वह अपने पति को प्रसन्न करने और लुभाने के लिए पुनः श्रृंगार करने लगती है,

ਜੈਸੇ ਬੰਦਸਾਲਾ ਬਿਖੈ ਭੂਪਤ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰੈ ਛੂਟਤ ਹੀ ਵਾਹੀ ਸ੍ਵਾਮਿ ਕਾਮਹਿ ਸਮ੍ਹਾਰੈ ਜੀ ।
जैसे बंदसाला बिखै भूपत की निंदा करै छूटत ही वाही स्वामि कामहि सम्हारै जी ।

जिस प्रकार किसी राजा के शुभचिंतक को किसी गलती के कारण जेल में डाल दिया जाता है और रिहा होने पर वही दरबारी राजा का सच्चा शुभचिंतक बनकर उसे सौंपा गया कार्य करता है,

ਜੈਸੇ ਹਰ ਹਾਇ ਗਾਇ ਸਾਸਨਾ ਸਹਤ ਨਿਤ ਕਬਹੂੰ ਨ ਸਮਝੈ ਕੁਟੇਵਹਿ ਨ ਡਾਰੈ ਜੀ ।
जैसे हर हाइ गाइ सासना सहत नित कबहूं न समझै कुटेवहि न डारै जी ।

जिस प्रकार एक चोर जब पकड़ा जाता है और जेल में डाल दिया जाता है तो वह हमेशा विलाप करता है, लेकिन जैसे ही उसकी सजा समाप्त होती है, वह अपनी सजा से सबक न लेते हुए पुनः चोरी करने लगता है,

ਤੈਸੇ ਦੁਖ ਦੋਖ ਪਾਪੀ ਪਾਪਹਿ ਤ੍ਯਾਗ੍ਯੋ ਚਾਹੈ ਸੰਕਟ ਮਿਟਤ ਪੁਨ ਪਾਪਹਿ ਬੀਚਾਰੈ ਜੀ ।੫੭੭।
तैसे दुख दोख पापी पापहि त्याग्यो चाहै संकट मिटत पुन पापहि बीचारै जी ।५७७।

इसी प्रकार पापी मनुष्य भी अपने बुरे कर्मों को दुःख और पीड़ा के कारण छोड़ना चाहता है, किन्तु दण्ड की अवधि समाप्त होते ही पुनः उन दुर्गुणों में लिप्त हो जाता है। (577)