कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 179


ਜੈਸੇ ਪ੍ਰਿਅ ਭੇਟਤ ਅਧਾਨ ਨਿਰਮਾਨ ਹੋਤ ਬਾਂਛਤ ਬਿਧਾਨ ਖਾਨ ਪਾਨ ਅਗ੍ਰਭਾਗਿ ਹੈ ।
जैसे प्रिअ भेटत अधान निरमान होत बांछत बिधान खान पान अग्रभागि है ।

जैसे ही पत्नी विनम्रतापूर्वक अपने पति के सामने प्रस्तुत होती है और गर्भवती हो जाती है, तो पति उसके लिए उसकी पसंद और स्वाद के सभी खाद्य पदार्थ लाता है।

ਜਨਮਤ ਸੁਤ ਖਾਨ ਪਾਨ ਕੋ ਸੰਜਮੁ ਕਰੈ ਸੁਤ ਹਿਤ ਰਸ ਕਸ ਸਕਲ ਤਿਆਗਿ ਹੈ ।
जनमत सुत खान पान को संजमु करै सुत हित रस कस सकल तिआगि है ।

पुत्र के जन्म पर वह उन सभी चीजों को खाने से परहेज करती है जो बच्चे के लिए हानिकारक हो सकती हैं।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਕਾਮਨਾ ਪੁਜਾਇ ਨਾਮ ਨਿਹਕਾਮ ਧਾਮ ਅਨਤ ਨ ਲਾਗਿ ਹੈ ।
तैसे गुर चरन सरनि कामना पुजाइ नाम निहकाम धाम अनत न लागि है ।

इसी प्रकार सच्चे गुरु की शरण में भक्तिपूर्वक जाने से गुरसिख की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। उसे सच्चे गुरु द्वारा नाम का आशीर्वाद प्राप्त होता है जो कि इच्छा-शून्यता का स्रोत है। उसे किसी और चीज़ की चाह नहीं रहती और न ही कोई अनुष्ठान करना पड़ता है।

ਨਿਸਿ ਅੰਧਕਾਰ ਭਵ ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰ ਬਿਖੈ ਪੰਚ ਤਸਕਰ ਜੀਤਿ ਸਿਖ ਹੀ ਸੁਜਾਗਿ ਹੈ ।੧੭੯।
निसि अंधकार भव सागर संसार बिखै पंच तसकर जीति सिख ही सुजागि है ।१७९।

जिस सिख को अमृतरूपी नाम का वरदान प्राप्त हो गया है, वह सावधानी से पाँचों बुराइयों पर विजय प्राप्त कर सकता है और अन्धकारमय रात्रि के समान भयावह संसार सागर को तैरकर पार कर सकता है। (179)