सच्चे गुरु की शरण में आकर भगवान के नाम का ध्यान करने से विकारों से दूषित मन दर्पण की तरह साफ हो जाता है।
मन और बुद्धि के प्रभाव में गुरु के उपदेशों को पक्षी-सदृश चंचल नेत्रों में डालकर चेतना उस सर्वशक्तिमान प्रभु में लीन हो जाती है जो जाति-पाति से रहित, माया के दोष से परे तथा समुद्र और पाताल में निवास करने वाले हैं।
भगवान का ऐसा दिव्य चिंतन (चिंतन) असंख्य संशय दूर करने वाला, पाप-पुण्य का नाश करने वाला है, जो जन्म-मरण के जाल में फंसे हुए व्यक्ति को नष्ट कर देता है। यह पांच शत्रुओं और उनकी चालों को भी चकनाचूर कर देता है।
गुरु-चेतना वाला व्यक्ति समस्त प्राणियों में व्याप्त मायारहित भगवान् की ज्योति को देखकर तथा भक्तिपूर्वक मानवजाति की सेवा करके निष्कलंक भगवान् के समान हो जाता है। माया का मोह त्यागकर वह घोर दोषों से बच जाता है तथा शुद्ध और स्वच्छ हो जाता है।