जैसे कपड़े शरीर से छू जाने पर गंदे हो जाते हैं, लेकिन पानी और साबुन से धुलकर साफ हो जाते हैं
जिस प्रकार तालाब का पानी शैवाल और गिरे हुए पत्तों की पतली परत से ढका होता है, लेकिन हाथ से परत को हटाने पर पीने योग्य स्वच्छ जल प्रकट होता है।
जैसे रात में तारों के टिमटिमाने पर भी अंधेरा रहता है, लेकिन सूर्य के उगने पर प्रकाश सर्वत्र फैल जाता है।
इसी प्रकार माया का प्रेम भी मन को कलंकित कर देता है, परन्तु सद्गुरु के उपदेश और उनके ध्यान से वह उज्ज्वल हो जाता है। (312)