कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 209


ਜੋਈ ਪ੍ਰਿਅ ਭਾਵੈ ਤਾਹਿ ਸੁੰਦਰਤਾ ਕੈ ਸੁਹਾਵੈ ਸੋਈ ਸੁੰਦਰੀ ਕਹਾਵੈ ਛਬਿ ਕੈ ਛਬੀਲੀ ਹੈ ।
जोई प्रिअ भावै ताहि सुंदरता कै सुहावै सोई सुंदरी कहावै छबि कै छबीली है ।

जिस जीव स्त्री को भगवान के सगुण रूप गुरु की कृपा प्राप्त हो जाती है, वह आध्यात्मिक सौन्दर्य के वरदान के कारण गुणवान और प्रशंसनीय बन जाती है। उसे ही वास्तव में सौन्दर्य कहते हैं।

ਜੋਈ ਪ੍ਰਿਅ ਭਾਵੈ ਤਾਹਿ ਬਾਨਕ ਬਧੂ ਬਨਾਵੈ ਸੋਈ ਬਨਤਾ ਕਹਾਵੈ ਰੰਗ ਮੈ ਰੰਗੀਲੀ ਹੈ ।
जोई प्रिअ भावै ताहि बानक बधू बनावै सोई बनता कहावै रंग मै रंगीली है ।

जो स्त्री अपने प्रियतम स्वामी से प्रेम करती है, उसे स्वामी अत्यन्त मनोहर वधू बना देते हैं। जो स्त्री सदैव भगवान के ध्यान के रंग में लीन रहती है, वही वास्तव में धन्य विवाहिता है।

ਜੋਈ ਪ੍ਰਿਅ ਭਾਵੈ ਤਾ ਕੀ ਸਬੈ ਕਾਮਨਾ ਪੁਜਾਵੈ ਸੋਈ ਕਾਮਨੀ ਕਹਾਵੈ ਸੀਲ ਕੈ ਸੁਸੀਲੀ ਹੈ ।
जोई प्रिअ भावै ता की सबै कामना पुजावै सोई कामनी कहावै सील कै सुसीली है ।

जो साधिका अपने प्रिय स्वामी की कृपा प्राप्त कर लेती है, उसकी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। अपने श्रेष्ठ स्वभाव के कारण वह अच्छे आचरण वाली होती है और इसी कारण वह सच्चे अर्थों में सुन्दरी कहलाती है।

ਜੋਈ ਪ੍ਰਿਅ ਭਾਵੈ ਤਾਹਿ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸ ਲੈ ਪੀਆਵੈ ਸੋਈ ਪ੍ਰੇਮਨੀ ਕਹਾਵੈ ਰਸਕ ਰਸੀਲੀ ਹੈ ।੨੦੯।
जोई प्रिअ भावै ताहि प्रेम रस लै पीआवै सोई प्रेमनी कहावै रसक रसीली है ।२०९।

जो साधिका स्त्री प्रिय सद्गुरु को प्रिय हो जाती है, उसे भगवान के प्रेम रूपी अमृत का रसपान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। जो इस दिव्य अमृत का रसपान कर लेती है, वही सच्चे अर्थों में प्रिय होती है। (209)