धन्य है वह व्यक्ति जो गुरु की बात मानकर उनका शिष्य (भक्त) बन जाता है। इस प्रक्रिया में उसका मन सच्चे गुरु में आश्वस्त हो जाता है।
गुरु की शिक्षाओं को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करने से भक्त के हृदय में प्रेम और उत्साह उत्पन्न होता है। जो व्यक्ति गुरु की शिक्षाओं पर अनन्य मन से काम करता है, वह विश्व भर में गुरु का सच्चा सिख कहलाने लगता है।
भगवान के नाम पर कठोर ध्यान के कारण गुरु और सिख का मिलन होता है, जो उन्हें गुरु की शिक्षाओं का ईमानदारी और कुशलता से अभ्यास करने में सक्षम बनाता है, और तब सिख पूर्ण भगवान को पहचानता है।
अपने गुरु की शिक्षाओं पर मेहनत करने में सिख की ईमानदारी दोनों को एक होने की हद तक साथ लाती है। यकीन मानिए! वाहेगुरु, वाहेगुरु (भगवान) और तुही तुही (केवल वही, केवल वही) का बार-बार जाप करके, वह भगवान को अपने दिल में बसा लेता है।