गन्ने में अमृत के समान मीठा रस होता है, लेकिन उसमें आनंद लेने के लिए जीभ नहीं होती। चंदन में सुगंध होती है, लेकिन उसके पेड़ में गंध का आनंद लेने के लिए नाक नहीं होती।
संगीत के वाद्य यंत्र श्रोताओं को विस्मय में डालने के लिए ध्वनि उत्पन्न करते हैं, लेकिन बिना कानों के ही उनकी धुन सुनी जा सकती है। असंख्य रंग और आकृतियाँ आँखों को आकर्षित करने के लिए होती हैं, लेकिन वे स्वयं उस सौंदर्य को देखने में असमर्थ होती हैं।
पारस पत्थर में किसी भी धातु को सोने में बदलने की शक्ति होती है, लेकिन इसमें स्पर्श की कोई इंद्रिय नहीं होती, यहां तक कि इसमें सर्दी या गर्मी का भी एहसास नहीं होता। धरती में बहुत सी जड़ी-बूटियां उगती हैं, लेकिन बिना हाथ-पैरों के यह कहीं भी पहुंचने के लिए कुछ नहीं कर सकती।
जिस व्यक्ति के पास ज्ञान की पांचों इन्द्रियां हैं और वह रसना, गंध, श्रवण, स्पर्श और दृष्टि इन पांच विकारों से भी आक्रांत है, वह निर्विकार मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकता है? केवल गुरु के आज्ञाकारी सिख ही सच्चे गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं।