कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 166


ਜੈਸੇ ਤਉ ਅਸਟ ਧਾਤੂ ਡਾਰੀਅਤ ਨਾਉ ਬਿਖੈ ਪਾਰਿ ਪਰੈ ਤਾਹਿ ਤਊ ਵਾਰ ਪਾਰ ਸੋਈ ਹੈ ।
जैसे तउ असट धातू डारीअत नाउ बिखै पारि परै ताहि तऊ वार पार सोई है ।

जैसे नाव में लदा आठ धातुओं का बंडल पारगमन के दौरान अपने रूप या रंग में किसी भी परिवर्तन के बिना दूसरे किनारे तक पहुंच जाएगा,

ਸੋਈ ਧਾਤੁ ਅਗਨਿ ਮੈ ਹਤ ਹੈ ਅਨਿਕ ਰੂਪ ਤਊ ਜੋਈ ਸੋਈ ਪੈ ਸੁ ਘਾਟ ਠਾਟ ਹੋਈ ਹੈ ।
सोई धातु अगनि मै हत है अनिक रूप तऊ जोई सोई पै सु घाट ठाट होई है ।

जब इन धातुओं को आग में डाला जाता है, तो वे पिघलकर अग्नि का रूप ले लेती हैं और फिर उनसे धातु के सुंदर आभूषण बनाए जाते हैं जो एक-दूसरे से कहीं अधिक सुंदर दिखते हैं।

ਸੋਈ ਧਾਤੁ ਪਾਰਸਿ ਪਰਸ ਪੁਨਿ ਕੰਚਨ ਹੁਇ ਮੋਲ ਕੈ ਅਮੋਲਾਨੂਪ ਰੂਪ ਅਵਲੋਈ ਹੈ ।
सोई धातु पारसि परस पुनि कंचन हुइ मोल कै अमोलानूप रूप अवलोई है ।

लेकिन जब वह पारस पत्थर के संपर्क में आता है तो सोने में बदल जाता है। अमूल्य होने के साथ-साथ वह देखने में भी सुंदर और आकर्षक हो जाता है।

ਪਰਮ ਪਾਰਸ ਗੁਰ ਪਰਸਿ ਪਾਰਸ ਹੋਤ ਸੰਗਤਿ ਹੁਇ ਸਾਧਸੰਗ ਸਤਸੰਗ ਪੋਈ ਹੈ ।੧੬੬।
परम पारस गुर परसि पारस होत संगति हुइ साधसंग सतसंग पोई है ।१६६।

इसी प्रकार भगवत्-प्रणिष्ट एवं पवित्र पुरुषों की संगति से मनुष्य पवित्र हो जाता है। पारसमणि में श्रेष्ठ, सच्चे गुरु का मिलन होने पर मनुष्य पारसमणि के समान हो जाता है। (166)