कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 439


ਪੂਛਤ ਪਥਕਿ ਤਿਹ ਮਾਰਗ ਨ ਧਾਰੈ ਪਗਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕੈ ਦੇਸ ਕੈਸੇ ਬਾਤਨੁ ਕੇ ਜਾਈਐ ।
पूछत पथकि तिह मारग न धारै पगि प्रीतम कै देस कैसे बातनु के जाईऐ ।

प्रियतम भगवान् के धाम का मार्ग तो कोई पथिक से पूछता है, परन्तु उस पर एक कदम भी नहीं चलता। उस मार्ग पर स्वयं प्रवृत्त हुए बिना, केवल बक-बक करके कोई प्रियतम भगवान् के धाम तक कैसे पहुँच सकता है?

ਪੂਛਤ ਹੈ ਬੈਦ ਖਾਤ ਅਉਖਦ ਨ ਸੰਜਮ ਸੈ ਕੈਸੇ ਮਿਟੈ ਰੋਗ ਸੁਖ ਸਹਜ ਸਮਾਈਐ ।
पूछत है बैद खात अउखद न संजम सै कैसे मिटै रोग सुख सहज समाईऐ ।

अहंकार रूपी रोग को दूर करने की औषधि तो कोई वैद्य या गुरु से पूछता है, परन्तु उस औषधि का सेवन नियमपूर्वक और सावधानी से नहीं करता। तो फिर अहंकार रूपी रोग कैसे दूर हो सकता है और आत्मिक शांति कैसे प्राप्त हो सकती है।

ਪੂਛਤ ਸੁਹਾਗਨ ਕਰਮ ਹੈ ਦੁਹਾਗਨਿ ਕੈ ਰਿਦੈ ਬਿਬਿਚਾਰ ਕਤ ਸਿਹਜਾ ਬੁਲਾਈਐ ।
पूछत सुहागन करम है दुहागनि कै रिदै बिबिचार कत सिहजा बुलाईऐ ।

भगवान के प्रियतम से पति से मिलने का उपाय पूछा जाता है, परन्तु उसके सभी कर्म और कर्म अभागिनी और त्यागी हुई स्त्रियों के समान होते हैं। फिर ऐसी कपटी हृदय वाली साधक पत्नी पति की शय्या पर कैसे आ सकती है?

ਗਾਏ ਸੁਨੇ ਆਂਖੇ ਮੀਚੈ ਪਾਈਐ ਨ ਪਰਮਪਦੁ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਗਹਿ ਜਉ ਲਉ ਨ ਕਮਾਈਐ ।੪੩੯।
गाए सुने आंखे मीचै पाईऐ न परमपदु गुर उपदेसु गहि जउ लउ न कमाईऐ ।४३९।

इसी प्रकार भगवान को हृदय में बसाए बिना, उनकी स्तुति किए बिना, उनके प्रवचन सुने बिना तथा प्रिय भगवान के लिए आंखें बंद किए बिना कोई उच्च आध्यात्मिक अवस्था तक नहीं पहुंच सकता। गुरु के उपदेशों को हृदय में पुनः स्थापित करना तथा उनका निरंतर अभ्यास करना।