कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 578


ਜੈਸੇ ਬੈਲ ਤੇਲੀ ਕੋ ਜਾਨਤ ਕਈ ਕੋਸ ਚਲ੍ਯੋ ਨੈਨ ਉਘਰਤ ਵਾਹੀ ਠਾਉ ਹੀ ਠਿਕਾਨੋ ਹੈ ।
जैसे बैल तेली को जानत कई कोस चल्यो नैन उघरत वाही ठाउ ही ठिकानो है ।

जिस प्रकार एक तेली का बैल आँखों पर पट्टी बाँधकर तेल निकालने वाली मशीन के चारों ओर घूमता रहता है और उसे लगता है कि वह कई मीलों का सफर तय कर चुका है, लेकिन जब उसकी आँखों पर पट्टी खोली जाती है तो वह अपने आप को उसी स्थान पर खड़ा हुआ देखता है।

ਜੈਸੇ ਜੇਵਰੀ ਬਟਤ ਆਂਧਰੋ ਅਚਿੰਤ ਚਿੰਤ ਖਾਤ ਜਾਤ ਬਛੁਰੋ ਟਟੇਰੋ ਪਛੁਤਾਨੋ ਹੈ ।
जैसे जेवरी बटत आंधरो अचिंत चिंत खात जात बछुरो टटेरो पछुतानो है ।

जैसे एक अंधा व्यक्ति रस्सी को घुमाता रहता है, जबकि उसी समय बछड़ा उसे खा रहा होता है। लेकिन जब उसे अपने द्वारा अब तक किए गए कार्य का अहसास होता है, तो उसे यह जानकर पश्चाताप होता है कि उसका बहुत-सा भाग तो उसने खा लिया है;

ਜੈਸੇ ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਲੌ ਧਾਵੈ ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਖਾਵੰਤ ਆਵਤ ਨ ਸਾਂਤਿ ਭ੍ਰਮ ਭ੍ਰਮਤ ਹਿਰਾਨੋ ਹੈ ।
जैसे म्रिग त्रिसना लौ धावै म्रिग त्रिखावंत आवत न सांति भ्रम भ्रमत हिरानो है ।

जैसे एक हिरण मृगतृष्णा की ओर दौड़ता रहता है, परंतु जल के अभाव में उसकी प्यास नहीं बुझती और वह भटकता हुआ व्याकुल हो जाता है।

ਤੈਸੇ ਸ੍ਵਪਨੰਤਰੁ ਦਿਸੰਤਰ ਬਿਹਾਯ ਗਈ ਪਹੁੰਚ ਨ ਸਕ੍ਯੋ ਤਹਾਂ ਜਹਾਂ ਮੋਹਿ ਜਾਨੋ ਹੈ ।੫੭੮।
तैसे स्वपनंतरु दिसंतर बिहाय गई पहुंच न सक्यो तहां जहां मोहि जानो है ।५७८।

इसी प्रकार देश-देशान्तर में भटकते हुए मैंने स्वप्न में ही अपना जीवन व्यतीत कर दिया है। जहाँ मुझे जाना था, वहाँ मैं नहीं पहुँच पाया हूँ। (मैं ईश्वर से अपना मिलन करने में असफल रहा हूँ।) (578)