सच्चे गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर यात्री बनकर गुरु का शिष्य स्थान-स्थान पर भटकने का भ्रम त्याग देता है और सच्चे गुरु के पवित्र चरणों की शरण ले लेता है।
सच्चे गुरु पर अपना मन केन्द्रित करके वह दूसरों को समान दृष्टि से देखने लगता है। सच्चे गुरु की आशीर्वादपूर्ण शिक्षा के चेतना में समाहित होने से वह सांसारिक से दिव्य बन जाता है।
सच्चे गुरु की सेवा करने से देवता और अन्य मनुष्य उनके सेवक बन जाते हैं। सच्चे गुरु की आज्ञा का पालन करके सारा संसार उनकी आज्ञा का पालन करने लगता है।
जीवन देने वाले और संसार के सभी निधियों को देने वाले भगवान की पूजा करके वह पारस पत्थर के समान हो जाता है। जो कोई उसके संपर्क में आता है, उसका वह कल्याण करता है। (२६१)