कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 236


ਸਰਵਰ ਮੈ ਨ ਜਾਨੀ ਦਾਦਰ ਕਮਲ ਗਤਿ ਮ੍ਰਿਗ ਮ੍ਰਿਗਮਦ ਗਤਿ ਅੰਤਰ ਨ ਜਾਨੀ ਹੈ ।
सरवर मै न जानी दादर कमल गति म्रिग म्रिगमद गति अंतर न जानी है ।

तालाब में रहने वाले मेंढक को यह पता नहीं होता कि उसी तालाब में कमल का फूल खिल रहा है। यहां तक कि हिरण को भी यह पता नहीं होता कि उसके शरीर में कस्तूरी की फली है।

ਮਨਿ ਮਹਿਮਾ ਨ ਜਾਨੀ ਅਹਿ ਬਿਖ੍ਰ ਬਿਖਮ ਕੈ ਸਾਗਰ ਮੈ ਸੰਖ ਨਿਧਿ ਹੀਨ ਬਕ ਬਾਨੀ ਹੈ ।
मनि महिमा न जानी अहि बिख्र बिखम कै सागर मै संख निधि हीन बक बानी है ।

जिस प्रकार विषैले सर्प को अपने विष के कारण अपने फन में छिपे अमूल्य मोती का पता नहीं रहता, उसी प्रकार शंख भी समुद्र में रहते हुए भी उसमें छिपे धन का पता नहीं लगा पाता।

ਚੰਦਨ ਸਮੀਪ ਜੈਸੇ ਬਾਂਸ ਨਿਰਗੰਧ ਕੰਧ ਉਲੂਐ ਅਲਖ ਦਿਨ ਦਿਨਕਰ ਧਿਆਨੀ ਹੈ ।
चंदन समीप जैसे बांस निरगंध कंध उलूऐ अलख दिन दिनकर धिआनी है ।

जैसे चन्दन के वृक्ष के समीप रहने पर भी बाँस का पौधा सुगंध से रहित रहता है, तथा जैसे उल्लू दिन में सूर्य की ओर ध्यान न देते हुए आँखें बन्द रखता है,

ਤੈਸੇ ਬਾਂਝ ਬਧੂ ਮਮ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰ ਪੁਰਖ ਭੇਟ ਨਿਹਚਲ ਸੇਂਬਲ ਜਿਉ ਹਉਮੈ ਅਭਿਮਾਨੀ ਹੈ ।੨੩੬।
तैसे बांझ बधू मम स्री गुर पुरख भेट निहचल सेंबल जिउ हउमै अभिमानी है ।२३६।

इसी प्रकार मैं भी अपने अहंकार और अभिमान के कारण गुरु का स्पर्श पाकर भी बांझ स्त्री की तरह बांझ रह गई। मैं रेशमी कपास जैसे ऊंचे, बांझ वृक्ष से अधिक श्रेष्ठ नहीं हूं। (236)