गुरु के सम्मुख आने वाला शिष्य सच्चे गुरु के अद्वितीय और सुखदायी वचनों को ग्रहण करके सभी इच्छाओं और अभावों से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार वह अपने ध्यान और समर्पण की शक्ति से सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।
गुरु के मार्ग पर चलकर वह अपने सभी द्वन्द्वों और संशय को नष्ट कर देता है। सच्चे गुरु की शरण में आने से उसका मन स्थिर हो जाता है।
सच्चे गुरु के दर्शन मात्र से ही उसकी सारी इच्छाएं और वासनाएं थक जाती हैं और निष्फल हो जाती हैं। हर सांस में प्रभु का स्मरण करते हुए, वह अपने जीवन के स्वामी प्रभु के प्रति पूर्णतः जागरूक हो जाता है।
भगवान की अनेकरूपी रचनाएँ अद्भुत और विस्मयकारी हैं। गुरु-प्रेरित शिष्य इस सम्पूर्ण चित्र में भगवान की उपस्थिति को सत्य और शाश्वत रूप में अनुभव करता है। (282)