कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 282


ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਖਫਲ ਕਾਮ ਨਿਹਕਾਮ ਕੀਨੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਉਦਮ ਨਿਰੁਦਮ ਉਕਤਿ ਹੈ ।
गुरमुखि सुखफल काम निहकाम कीने गुरमुखि उदम निरुदम उकति है ।

गुरु के सम्मुख आने वाला शिष्य सच्चे गुरु के अद्वितीय और सुखदायी वचनों को ग्रहण करके सभी इच्छाओं और अभावों से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार वह अपने ध्यान और समर्पण की शक्ति से सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਾਰਗ ਹੁਇ ਦੁਬਿਧਾ ਭਰਮ ਖੋਏ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਗਹੇ ਨਿਹਚਲ ਮਤਿ ਹੈ ।
गुरमुखि मारग हुइ दुबिधा भरम खोए चरन सरनि गहे निहचल मति है ।

गुरु के मार्ग पर चलकर वह अपने सभी द्वन्द्वों और संशय को नष्ट कर देता है। सच्चे गुरु की शरण में आने से उसका मन स्थिर हो जाता है।

ਦਰਸਨ ਪਰਸਤ ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਥਕਿਤ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਨ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਹੈ ।
दरसन परसत आसा मनसा थकित सबद सुरति गिआन प्रान प्रानपति है ।

सच्चे गुरु के दर्शन मात्र से ही उसकी सारी इच्छाएं और वासनाएं थक जाती हैं और निष्फल हो जाती हैं। हर सांस में प्रभु का स्मरण करते हुए, वह अपने जीवन के स्वामी प्रभु के प्रति पूर्णतः जागरूक हो जाता है।

ਰਚਨਾ ਚਰਿਤ੍ਰ ਚਿਤ੍ਰ ਬਿਸਮ ਬਚਿਤ੍ਰਪਨ ਚਿਤ੍ਰ ਮੈ ਚਿਤੇਰ੍ਰਾ ਕੋ ਬਸੇਰਾ ਸਤਿ ਸਤਿ ਹੈ ।੨੮੨।
रचना चरित्र चित्र बिसम बचित्रपन चित्र मै चितेर्रा को बसेरा सति सति है ।२८२।

भगवान की अनेकरूपी रचनाएँ अद्भुत और विस्मयकारी हैं। गुरु-प्रेरित शिष्य इस सम्पूर्ण चित्र में भगवान की उपस्थिति को सत्य और शाश्वत रूप में अनुभव करता है। (282)