एक कुंवारी कन्या जो सदैव आशा करती है कि उसे अपने पिता द्वारा एक दिन उसके लिए ढूंढे गए पति के घर में उच्च पद प्राप्त होगा, वह धोखेबाज स्त्री से कहीं बेहतर है।
वह स्त्री जो अपने पति से अलग हो गई हो और जो अपनी विनम्रता के कारण अपने किए पर पश्चाताप करती हो, जिसके फलस्वरूप उसका पति उसके पापों को क्षमा कर देता हो, वह छली स्त्री से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
जो स्त्री अपने पति से अलग हो गई है और वियोग की पीड़ा सहते हुए पुनर्मिलन के लिए शुभ समय और शुभ शकुन ढूंढने में तत्पर रहती है, वह विश्वासघाती और धोखेबाज स्त्री से श्रेष्ठ है।
ऐसी कपटपूर्ण प्रेमवाली स्त्री को तो माता के गर्भ में ही मर जाना चाहिए था। कपटपूर्ण प्रेम ऐसे द्वैत से भरा है, जैसे राहु और केतु नामक दो राक्षस हैं, जो सूर्य और चंद्र ग्रहण का कारण बनते हैं। (450)