कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 582


ਸੰਗ ਮਿਲਿ ਚਲੈ ਨਿਰਬਿਘਨ ਪਹੂਚੈ ਘਰ ਬਿਛਰੈ ਤੁਰਤ ਬਟਵਾਰੋ ਮਾਰ ਡਾਰ ਹੈਂ ।
संग मिलि चलै निरबिघन पहूचै घर बिछरै तुरत बटवारो मार डार हैं ।

जिस प्रकार दूसरों के साथ यात्रा करने वाला व्यक्ति सुरक्षित घर पहुंच जाता है, किन्तु जो व्यक्ति उनसे अलग हो जाता है, उसे डाकू लूट लेते हैं और मार देते हैं।

ਜੈਸੇ ਬਾਰ ਦੀਏ ਖੇਤ ਛੁਵਤ ਨ ਮ੍ਰਿਗ ਨਰ ਛੇਡੀ ਭਏ ਮ੍ਰਿਗ ਪੰਖੀ ਖੇਤਹਿ ਉਜਾਰ ਹੈਂ ।
जैसे बार दीए खेत छुवत न म्रिग नर छेडी भए म्रिग पंखी खेतहि उजार हैं ।

जिस प्रकार बाड़ लगे खेत को मनुष्य और पशु नहीं छू सकते, उसी प्रकार बिना बाड़ वाले खेत को राहगीर और पशु नष्ट कर देते हैं।

ਪਿੰਜਰਾ ਮੈ ਸੂਆ ਜੈਸੇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਲੇਤ ਹੇਤੁ ਨਿਕਸਤਿ ਖਿਨ ਤਾਂਹਿ ਗ੍ਰਸਤ ਮੰਜਾਰ ਹੈ ।
पिंजरा मै सूआ जैसे राम नाम लेत हेतु निकसति खिन तांहि ग्रसत मंजार है ।

जैसे एक तोता पिंजरे में बंद होने पर राम राम चिल्लाता है लेकिन जैसे ही वह पिंजरे से बाहर निकलता है, बिल्ली उस पर झपट पड़ती है और उसे खा जाती है।

ਸਾਧਸੰਗ ਮਿਲਿ ਮਨ ਪਹੁਚੈ ਸਹਜ ਘਰਿ ਬਿਚਰਤ ਪੰਚੋ ਦੂਤ ਪ੍ਰਾਨ ਪਰਿਹਾਰ ਹੈਂ ।੫੮੨।
साधसंग मिलि मन पहुचै सहज घरि बिचरत पंचो दूत प्रान परिहार हैं ।५८२।

इसी प्रकार मनुष्य का मन भी ईश्वर रूपी सच्चे गुरु से जुड़कर उच्च आध्यात्मिक स्थिति प्राप्त करता है, किन्तु सच्चे गुरु से विमुख होने पर वह भटकता रहता है तथा काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार नामक पाँच विकारों द्वारा नष्ट हो जाता है।