कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 417


ਜੈਸੇ ਕੁਆਰ ਕੰਨਿਆ ਮਿਲਿ ਖੇਲਤ ਅਨੇਕ ਸਖੀ ਸਕਲ ਕੋ ਏਕੈ ਦਿਨ ਹੋਤ ਨ ਬਿਵਾਹ ਜੀ ।
जैसे कुआर कंनिआ मिलि खेलत अनेक सखी सकल को एकै दिन होत न बिवाह जी ।

जिस प्रकार अनेक कुंवारी कन्याएं एकत्रित होकर एक दूसरे के साथ खेलती हैं, किन्तु उन सबका विवाह एक ही दिन नहीं होता।

ਜੈਸੇ ਬੀਰ ਖੇਤ ਬਿਖੈ ਜਾਤ ਹੈ ਸੁਭਟ ਜੇਤੇ ਸਬੈ ਨ ਮਰਤ ਤੇਤੇ ਸਸਤ੍ਰਨ ਸਨਾਹ ਜੀ ।
जैसे बीर खेत बिखै जात है सुभट जेते सबै न मरत तेते ससत्रन सनाह जी ।

जिस प्रकार अनेक योद्धा पूरी तरह से सशस्त्र होकर तथा कवच से सुरक्षित होकर युद्ध के मैदान में जाते हैं, वे युद्ध के मैदान में नहीं मरते।

ਬਾਵਨ ਸਮੀਪ ਜੈਸੇ ਬਿਬਿਧਿ ਬਨਾਸਪਤੀ ਏਕੈ ਬੇਰ ਚੰਦਨ ਕਰਤ ਹੈ ਨ ਤਾਹਿ ਜੀ ।
बावन समीप जैसे बिबिधि बनासपती एकै बेर चंदन करत है न ताहि जी ।

जिस प्रकार चंदन के पेड़ों के चारों ओर अनेक पेड़-पौधे होते हैं, परंतु सभी एक साथ चंदन की सुगंध से संपन्न नहीं होते।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਜਾਤੁ ਹੈ ਜਗਤ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਪਦ ਚਾਹਿਤ ਹੈ ਜਾਹਿ ਜੀ ।੪੧੭।
तैसे गुर चरन सरनि जातु है जगत जीवन मुकति पद चाहित है जाहि जी ।४१७।

इसी प्रकार सारा संसार सच्चे गुरु की शरण में चला जाए, परन्तु मोक्ष की प्राप्ति केवल उसी को होती है, जो गुरु को प्रिय हो। (वह शिष्य जो श्रद्धा और भक्ति से गुरु की सेवा करता है) (417)