अविवाहित पुत्री मायके में सभी की प्रिय होती है तथा अपने सद्गुणों के कारण ससुराल में भी सम्मान पाती है।
जैसे कोई व्यक्ति व्यापार करने तथा जीविका कमाने के लिए दूसरे नगरों में जाता है, किन्तु लाभ कमाने पर ही वह आज्ञाकारी पुत्र कहलाता है;
जब कोई योद्धा शत्रु की पंक्ति में घुसकर विजयी होता है तो उसे बहादुर कहा जाता है।
इसी प्रकार जो मनुष्य सत्संग का उपदेश करता है, सच्चे गुरु की शरण लेता है, वह भगवान के दरबार में स्वीकार किया जाता है। (118)