कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 118


ਨੈਹਰ ਕੁਆਰਿ ਕੰਨਿਆ ਲਾਡਿਲੀ ਕੈ ਮਾਨੀਅਤਿ ਬਿਆਹੇ ਸਸੁਰਾਰ ਜਾਇ ਗੁਨਨੁ ਕੈ ਮਾਨੀਐ ।
नैहर कुआरि कंनिआ लाडिली कै मानीअति बिआहे ससुरार जाइ गुननु कै मानीऐ ।

अविवाहित पुत्री मायके में सभी की प्रिय होती है तथा अपने सद्गुणों के कारण ससुराल में भी सम्मान पाती है।

ਬਨਜ ਬਿਉਹਾਰ ਲਗਿ ਜਾਤ ਹੈ ਬਿਦੇਸਿ ਪ੍ਰਾਨੀ ਕਹੀਏ ਸਪੂਤ ਲਾਭ ਲਭਤ ਕੈ ਆਨੀਐ ।
बनज बिउहार लगि जात है बिदेसि प्रानी कहीए सपूत लाभ लभत कै आनीऐ ।

जैसे कोई व्यक्ति व्यापार करने तथा जीविका कमाने के लिए दूसरे नगरों में जाता है, किन्तु लाभ कमाने पर ही वह आज्ञाकारी पुत्र कहलाता है;

ਜੈਸੇ ਤਉ ਸੰਗ੍ਰਾਮ ਸਮੈ ਪਰ ਦਲ ਮੈ ਅਕੇਲੋ ਜਾਇ ਜੀਤਿ ਆਵੈ ਸੋਈ ਸੂਰੋ ਸੁਭਟੁ ਬਖਾਨੀਐ ।
जैसे तउ संग्राम समै पर दल मै अकेलो जाइ जीति आवै सोई सूरो सुभटु बखानीऐ ।

जब कोई योद्धा शत्रु की पंक्ति में घुसकर विजयी होता है तो उसे बहादुर कहा जाता है।

ਮਾਨਸ ਜਨਮੁ ਪਾਇ ਚਰਨਿ ਸਰਨਿ ਗੁਰ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲੈ ਗੁਰਦੁਆਰਿ ਪਹਿਚਾਨੀਐ ।੧੧੮।
मानस जनमु पाइ चरनि सरनि गुर साधसंगति मिलै गुरदुआरि पहिचानीऐ ।११८।

इसी प्रकार जो मनुष्य सत्संग का उपदेश करता है, सच्चे गुरु की शरण लेता है, वह भगवान के दरबार में स्वीकार किया जाता है। (118)