कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 308


ਬਿਰਖ ਬਲੀ ਮਿਲਾਪ ਸਫਲ ਸਘਨ ਛਾਇਆ ਬਾਸੁ ਤਉ ਬਰਨ ਦੋਖੀ ਮਿਲੇ ਜਰੈ ਜਾਰਿ ਹੈ ।
बिरख बली मिलाप सफल सघन छाइआ बासु तउ बरन दोखी मिले जरै जारि है ।

अनेक फलदार वृक्ष तथा उन पर चढ़ी हुई लताएँ घनी छाया प्रदान करती हैं। वे सभी राहगीरों को सुख प्रदान करती हैं। किन्तु आपस में रगड़ खाने वाला बाँस अग्नि द्वारा स्वयं भी नष्ट हो जाता है तथा उसके निकट रहने वाले अन्य लोगों के लिए भी विनाश का कारण बनता है।

ਸਫਲ ਹੁਇ ਤਰਹਰ ਝੁਕਤਿ ਸਕਲ ਤਰ ਬਾਂਸੁ ਤਉ ਬਡਾਈ ਬੂਡਿਓ ਆਪਾ ਨ ਸੰਮਾਰ ਹੈ ।
सफल हुइ तरहर झुकति सकल तर बांसु तउ बडाई बूडिओ आपा न संमार है ।

अन्य सभी फलदार वृक्ष झुक जाते हैं, किन्तु बांस का वृक्ष अपनी प्रशंसा में मदमस्त होकर गर्व करता रहता है।

ਸਕਲ ਬਨਾਸਪਤੀ ਸੁਧਿ ਰਿਦੈ ਮੋਨਿ ਗਹੇ ਬਾਂਸੁ ਤਉ ਰੀਤੋ ਗਠੀਲੋ ਬਾਜੇ ਧਾਰ ਮਾਰਿ ਹੈ ।
सकल बनासपती सुधि रिदै मोनि गहे बांसु तउ रीतो गठीलो बाजे धार मारि है ।

सभी फलदार वृक्ष मन से शांत रहते हैं और स्वभाव से मौन रहते हैं। वे कोई आवाज़ नहीं करते। लेकिन लंबा बांस अंदर से खोखला और गांठदार होता है। वह रोता है और शोर मचाता है।

ਚੰਦਨ ਸਮੀਪ ਹੀ ਅਛਤ ਨਿਰਗੰਧ ਰਹੇ ਗੁਰਸਿਖ ਦੋਖੀ ਬਜ੍ਰ ਪ੍ਰਾਨੀ ਨ ਉਧਾਰਿ ਹੈ ।੩੦੮।
चंदन समीप ही अछत निरगंध रहे गुरसिख दोखी बज्र प्रानी न उधारि है ।३०८।

जो सच्चे गुरु जैसे चंदन के समीप रहकर भी अभिमानी और कपटी रहता है (सुगंधहीन रहता है) और गुरु की बुद्धि प्राप्त नहीं करता, ऐसा जो गुरु के शिष्यों का बुरा चाहता है, वह कभी भी भवसागर से पार नहीं हो सकता॥