कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 161


ਜੈਸੇ ਤਉ ਸਲਿਲ ਮਿਲਿ ਬਰਨ ਬਰਨ ਬਿਖੈ ਜਾਹੀ ਜਾਹੀ ਰੰਗ ਮਿਲੈ ਸੋਈ ਹੁਇ ਦਿਖਾਵਈ ।
जैसे तउ सलिल मिलि बरन बरन बिखै जाही जाही रंग मिलै सोई हुइ दिखावई ।

जैसे पानी में मिलाए गए रंग का रंग उसे प्राप्त हो जाता है, जैसे घी उसमें पकाई गई सब्जी और अन्य पदार्थों का स्वाद जीभ तक पहुंचा देता है,

ਜੈਸੇ ਘ੍ਰਿਤ ਜਾਹੀ ਜਾਹੀ ਪਾਕ ਸਾਕ ਸੰਗ ਮਿਲੈ ਤੈਸੇ ਤੈਸੋ ਸ੍ਵਾਦ ਰਸ ਰਸਨਾ ਚਖਾਵਈ ।
जैसे घ्रित जाही जाही पाक साक संग मिलै तैसे तैसो स्वाद रस रसना चखावई ।

चूंकि नकल करने वाले का अपना एक निश्चित चरित्र होता है, इसलिए वह नकल करने के लिए विभिन्न चरित्र अपनाता है, लेकिन वह उस समय जिस चरित्र की नकल कर रहा होता है, उससे ही जाना जाता है।

ਜੈਸੇ ਸ੍ਵਾਂਗੀ ਏਕੁ ਹੁਇ ਅਨੇਕ ਭਾਤਿ ਭੇਖ ਧਾਰੈ ਜੋਈ ਜੋਈ ਸ੍ਵਾਂਗ ਕਾਛੈ ਸੋਈ ਤਉ ਕਹਾਵਈ ।
जैसे स्वांगी एकु हुइ अनेक भाति भेख धारै जोई जोई स्वांग काछै सोई तउ कहावई ।

इसी प्रकार चंचल मन वाला मनुष्य भी उन लोगों की संगति में आकर बुराइयों में लिप्त हो जाता है जिनका मन चंचल और चंचल होता है।

ਤੈਸੇ ਚਿਤ ਚੰਚਲ ਚਪਲ ਸੰਗ ਦੋਖੁ ਲੇਪ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਇ ਏਕ ਟੇਕ ਠਹਰਾਵਈ ।੧੬੧।
तैसे चित चंचल चपल संग दोखु लेप गुरमुखि होइ एक टेक ठहरावई ।१६१।

परन्तु सच्चे गुरु का आज्ञाकारी सिख सच्चे गुरु की संगति और शिक्षाओं में ईश्वर उन्मुख हो जाता है। (161)