जैसे पानी में मिलाए गए रंग का रंग उसे प्राप्त हो जाता है, जैसे घी उसमें पकाई गई सब्जी और अन्य पदार्थों का स्वाद जीभ तक पहुंचा देता है,
चूंकि नकल करने वाले का अपना एक निश्चित चरित्र होता है, इसलिए वह नकल करने के लिए विभिन्न चरित्र अपनाता है, लेकिन वह उस समय जिस चरित्र की नकल कर रहा होता है, उससे ही जाना जाता है।
इसी प्रकार चंचल मन वाला मनुष्य भी उन लोगों की संगति में आकर बुराइयों में लिप्त हो जाता है जिनका मन चंचल और चंचल होता है।
परन्तु सच्चे गुरु का आज्ञाकारी सिख सच्चे गुरु की संगति और शिक्षाओं में ईश्वर उन्मुख हो जाता है। (161)