सच्चे गुरु का अनन्य सेवक गुरु की शरण में आकर तथा गुरु के पवित्र वचनों का ध्यान करके अपने भटकते हुए मन को वश में रखता है। उसका मन स्थिर हो जाता है तथा उसे अपनी आत्मा में सुख की अनुभूति होती है।
वह दीर्घायु की इच्छा खो देता है और मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। वह जीवित रहते हुए ही सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है। गुरु की शिक्षाएँ और ज्ञान उसके मन पर हावी हो जाते हैं।
वह अपने अहंकार को त्यागकर नष्ट कर देता है और सर्वशक्तिमान की व्यवस्था को उचित और न्यायपूर्ण मानता है। वह सभी जीवों की सेवा करता है और इस प्रकार दासों का दास बन जाता है।
गुरु के वचनों का पालन करने से उसे दिव्य ज्ञान और ध्यान की प्राप्ति होती है और इस प्रकार उसे विश्वास हो जाता है कि पूर्ण परमात्मा सबमें व्याप्त है। (281)