कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 223


ਮਨ ਮ੍ਰਿਗ ਮ੍ਰਿਗਮਦ ਅਛਤ ਅੰਤਰਗਤਿ ਭੂਲਿਓ ਭ੍ਰਮ ਖੋਜਤ ਫਿਰਤ ਬਨ ਮਾਹੀ ਜੀ ।
मन म्रिग म्रिगमद अछत अंतरगति भूलिओ भ्रम खोजत फिरत बन माही जी ।

मानव मन तेज गति से दौड़ने वाले हिरण के समान है, जिसके भीतर नाम रूपी कस्तूरी भरी हुई है, लेकिन वह अनेक शंकाओं और आशंकाओं के कारण उसे वन में खोजता रहता है।

ਦਾਦਰ ਸਰੋਜ ਗਤਿ ਏਕੈ ਸਰਵਰ ਬਿਖੈ ਅੰਤਰਿ ਦਿਸੰਤਰ ਹੁਇ ਸਮਝੈ ਨਾਹੀ ਜੀ ।
दादर सरोज गति एकै सरवर बिखै अंतरि दिसंतर हुइ समझै नाही जी ।

मेंढक और कमल का फूल एक ही तालाब में रहते हैं, फिर भी मेंढक रूपी मन कमल को नहीं जानता, मानो वह किसी विदेशी धरती पर रहता हो। मेंढक कमल का फूल नहीं, बल्कि काई खाता है। ऐसी मनःस्थिति उस व्यक्ति की होती है, जिसे नाम अमृत का पता ही नहीं होता।

ਜੈਸੇ ਬਿਖਿਆਧਰ ਤਜੈ ਨ ਬਿਖਿ ਬਿਖਮ ਕਉ ਅਹਿਨਿਸਿ ਬਾਵਨ ਬਿਰਖ ਲਪਟਾਹੀ ਜੀ ।
जैसे बिखिआधर तजै न बिखि बिखम कउ अहिनिसि बावन बिरख लपटाही जी ।

जैसे साँप चंदन के वृक्ष पर लिपटा रहने पर भी अपना विष नहीं छोड़ता, उसी प्रकार उस मनुष्य की भी दशा होती है जो धर्मसभा में भी अपने दुर्गुणों को नहीं छोड़ता।

ਜੈਸੇ ਨਰਪਤਿ ਸੁਪਨੰਤਰ ਭੇਖਾਰੀ ਹੋਇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਗਤ ਮੈ ਭਰਮ ਮਿਟਾਹੀ ਜੀ ।੨੨੩।
जैसे नरपति सुपनंतर भेखारी होइ गुरमुखि जगत मै भरम मिटाही जी ।२२३।

हमारे भटकते मन की स्थिति उस राजा की तरह है जो स्वप्न में भिखारी बन जाता है। लेकिन गुरु के अनुयायी सिख का मन नाम सिमरन की शक्ति से अपने सभी संदेहों और आशंकाओं को दूर कर देता है और स्वयं को पहचानकर उद्देश्यपूर्ण, संतुष्ट और सुखी जीवन जीता है।