मानव मन तेज गति से दौड़ने वाले हिरण के समान है, जिसके भीतर नाम रूपी कस्तूरी भरी हुई है, लेकिन वह अनेक शंकाओं और आशंकाओं के कारण उसे वन में खोजता रहता है।
मेंढक और कमल का फूल एक ही तालाब में रहते हैं, फिर भी मेंढक रूपी मन कमल को नहीं जानता, मानो वह किसी विदेशी धरती पर रहता हो। मेंढक कमल का फूल नहीं, बल्कि काई खाता है। ऐसी मनःस्थिति उस व्यक्ति की होती है, जिसे नाम अमृत का पता ही नहीं होता।
जैसे साँप चंदन के वृक्ष पर लिपटा रहने पर भी अपना विष नहीं छोड़ता, उसी प्रकार उस मनुष्य की भी दशा होती है जो धर्मसभा में भी अपने दुर्गुणों को नहीं छोड़ता।
हमारे भटकते मन की स्थिति उस राजा की तरह है जो स्वप्न में भिखारी बन जाता है। लेकिन गुरु के अनुयायी सिख का मन नाम सिमरन की शक्ति से अपने सभी संदेहों और आशंकाओं को दूर कर देता है और स्वयं को पहचानकर उद्देश्यपूर्ण, संतुष्ट और सुखी जीवन जीता है।