कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 548


ਜੈਸੇ ਪ੍ਰਾਤ ਸਮੈ ਖਗੇ ਜਾਤ ਉਡਿ ਬਿਰਖ ਸੈ ਬਹੁਰਿ ਆਇ ਬੈਠਤ ਬਿਰਖ ਹੀ ਮੈ ਆਇ ਕੈ ।
जैसे प्रात समै खगे जात उडि बिरख सै बहुरि आइ बैठत बिरख ही मै आइ कै ।

जैसे पक्षी सुबह पेड़ से उड़ जाते हैं और शाम को पेड़ पर वापस आ जाते हैं,

ਚੀਟੀ ਚੀਟਾ ਬਿਲ ਸੈ ਨਿਕਸਿ ਧਰ ਗਵਨ ਕੈ ਬਹੁਰਿਓ ਪੈਸਤ ਜੈਸੇ ਬਿਲ ਹੀ ਮੈ ਜਾਇ ਕੈ ।
चीटी चीटा बिल सै निकसि धर गवन कै बहुरिओ पैसत जैसे बिल ही मै जाइ कै ।

जिस प्रकार चींटियाँ और कीड़े-मकोड़े अपने बिलों से बाहर निकलकर ज़मीन पर चलते हैं और घूमने के बाद वापस बिल में लौट आते हैं,

ਲਰਕੈ ਲਰਿਕਾ ਰੂਠਿ ਜਾਤ ਤਾਤ ਮਾਤ ਸਨ ਭੂਖ ਲਾਗੈ ਤਿਆਗੈ ਹਠ ਆਵੈ ਪਛੁਤਾਇ ਕੈ ।
लरकै लरिका रूठि जात तात मात सन भूख लागै तिआगै हठ आवै पछुताइ कै ।

जिस प्रकार एक पुत्र अपने माता-पिता से झगड़ा होने पर घर से चला जाता है, और जब उसे भूख लगती है तो वह अपनी हठधर्मिता त्याग देता है और पश्चाताप करते हुए घर लौटता है,

ਤੈਸੇ ਗ੍ਰਿਹ ਤਿਆਗਿ ਭਾਗਿ ਜਾਤ ਉਦਾਸ ਬਾਸ ਆਸਰੋ ਤਕਤ ਪੁਨਿ ਗ੍ਰਿਹਸਤ ਕੋ ਧਾਇ ਕੈ ।੫੪੮।
तैसे ग्रिह तिआगि भागि जात उदास बास आसरो तकत पुनि ग्रिहसत को धाइ कै ।५४८।

इसी प्रकार मनुष्य गृहस्थ जीवन त्यागकर संन्यासी जीवन के लिए जंगल में चला जाता है, परंतु आध्यात्मिक सुख प्राप्त नहीं कर पाता और इधर-उधर भटकने के बाद अपने परिवार में वापस आ जाता है।