योगी की कठिन साधना को पार करके गुरु-प्रधान व्यक्ति आध्यात्मिक जगत के रहस्यमय दसवें द्वार में स्नान करता है। वह अमृत-रूपी नाम में निवास करता है और निर्भय प्रभु का अभ्यासी बन जाता है।
वह रहस्यमय दसवें द्वार में दिव्य अमृत के निरंतर प्रवाह का अनुभव करता है। वह दिव्य प्रकाश और दिव्य अखंडित संगीत के निरंतर बजने का अनुभव करता है।
गुरु-प्रधान व्यक्ति आत्मस्थ होकर प्रभु परमात्मा में लीन हो जाता है। उसके आध्यात्मिक ज्ञान के कारण सभी चमत्कारी शक्तियां उसकी दास बन जाती हैं।
जिसने इस जीवन में भगवान तक पहुँचने का उपाय सीख लिया है, वह जीते जी मुक्त हो जाता है। वह सांसारिक विषयों (माया) से अप्रभावित रहता है, जैसे कमल का फूल पानी में रहता है और उससे प्रभावित नहीं होता। (248)